
💥पेड़ काटे अडानी तो देश का विकास, आम जनता काटे तो प्रकृति का विनाश।
💥अडानी पॉवर मतलब हाई पॉवर, जिसके आगे हेलोजन भी हो जाते हैं फ्यूज।
💥जनता लगा रही एक पेड़ माँ के नाम, तो अडानी काट रहा हजारों पेड़ किसके नाम ?
💥अजब विकास की गजब कहानी, अड़ियल सांड की तरह अड़ा है अडानी।
तहतक न्यूज/रायगढ़, छत्तीसगढ़।
वर्तमान युग में बड़े-बुजुर्ग कहते हैं “दुनिया दौलत वालों की है, मेहनत वालों की नहीं ” ये बात सोलह आने सच है क्योंकि धनपतियों के उँगलियों के इशारे पर दुनिया के बड़े-बड़े नेता, मन्त्री,अधिकारी ता ता थैया करते थिरकते नजर आते हैं और अपनी मेहनतकश प्रजा के उम्मीदों को ताक पर रख औद्योगिक घरानों द्वारा निर्मित कुबेर के मंदिर में चुप रहने का मौनव्रत धारण कर लेते हैं। ये हम नहीं, मुड़ागांव में हजारों की संख्या में विशाल वृक्षों की हत्या को लेकर चल रहे जन आंदोलन और कोरबा के भू-विस्थापितों के साथ हो रहे दोगलेपन की तस्वीरें बयां कर रही हैं।

जीवंत तस्वीरों और स्थानीय नागरिकों (पीड़ित आदिवासी ग्रामीणों) के अनुसार, कॉर्पोरेट जगत की मशहूर हस्ती “अडानी समूह” ने मुड़ागांव के जंगल का सफाया कर गरीब आदिवासियों का न केवल जल-जंगल-जमीन छिना है, बल्कि जिले की बची-खुची जीवनदायिनी पर्यावरण को भी भारी क्षति पहुँचाया है। यही नहीं, इन सैकड़ों आदिवासियों के पास अब स्वतंत्र जीवन निर्वाह और रोजगार के संकट पैदा हो गये हैं, जिसका वे पुरजोर विरोध कर रहे हैं।
दूसरी तस्वीर कोरबा जिले की है, जिसमें फूल सिंह राठिया विधायक रामपुर ने “अडानी पॉवर लिमिटेड कोरबा” को पत्र लिख कर स्थानीय लोगों की उपेक्षा और उनकी समस्याओं का निराकरण करने को कहा है। उल्लेखनीय है कि 20 साल पहले 2004-5 में इकाई 1 और 2 के लिए जमीन अधिग्रहण किया गया था, जिसमें 330 भू-विस्थापितों को स्थायी रोजगार दिया जाना था। कुछ भू-विस्थापित नाबालिक होने के कारण अपात्र हो गये थे। इनके वयस्क हो जाने के बाद भी लगभग 12 वर्षों से अडानी द्वारा गुमराह किया जा रहा है, फलस्वरूप आज भी ये बेरोजगारी का दंश झेल रहे हैं। इकाई 1 व 2 में भू-विस्थापित कर्मचारियों की मानें तो कंपनी के एग्जीक्यूटिव एवं अधिकारियों को माह अप्रैल 2025 में वेतनवृद्धि दिया गया, लेकिन भू-विस्थापित कर्मचारियों को नहीं दिया गया।

इतना ही नहीं, 2011-12 में भी इकाई-3,4,5,और 6 के लिए जमीन अधिग्रहित किया गया था, परन्तु आज तारीख तक किसी को अडानी पॉवर कंपनी में रोजगार नहीं दिया गया है। सीएसआर मद के तहत दिये जाने वाले मूलभूत सुविधाओं की बात करें तो प्रभावित गांवों में शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पेयजल, सड़क व नाली जैसे जनहित के कार्य अडानी पॉवर कंपनी द्वारा नहीं किया जा रहा है।
हकीकत की तहकीकात में बात करें तहतक की तो जनता के विकास की दुहाई देकर वृहद उद्योगों की गलत तरीके से स्थापना की जा रही है। कंपनियों द्वारा दो-चार सामाजिक कार्य कर कपोल-कल्पित विज्ञापनों के जरिये अपने हाथों अपनी ही पीठ थपथपा ली जाती है। सरकारें भी विकास की इस मृग-मरीचिका को साक्षात् दर्शन कर आँखें मुंद लेती हैं और जनता-जनार्दन भी दिग्भ्रमित हो कर पश्चात्ताप के आँसू बहाने को विवश हो जाती है। सवाल उठता है क्या यही है विकास की परिभाषा?
