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क्या..सियासतदारों को बचानी थी अपनी साख ? इसलिए दी गिरफ्तारी, जनता पूछ रही सवाल

Pancham Singh Thakur By Pancham Singh Thakur 1 July 2025 4 Min Read
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💥काले हीरे के बदले हरे सोने गँवाना कितना सही कितना गलत?

💥क्षेत्रीय ग्रामीणों का आरोप, बिना ग्रामसभा अनुमति के काटे जा रहे हजारों पेड़।

💥सियासतदारों की गिरफ्तारी पर उठ रहे सवाल, साख बचाने की राजनीति तो नहीं?

💥विशेष आरक्षण प्राप्त आदिवासी समुदाय की ये है असली हकीकत

तहतक न्यू/तमनार-रायगढ़, छत्तीसगढ़।
जिले के तमनार ब्लॉक का मुड़ागांव इन दिनों चर्चा का केंद्र बना हुआ है। बीते दिनों हुए जंगल कटाई को लेकर यहाँ के ग्रामीणों ने जमकर विरोध किया। आरोप है कि यह कटाई अवैध है और नियमतः ग्रामसभा से कोई अनुमति नहीं ली गयी है।

दरअसल, कोयला खदान के लिए मुड़ागांव के जिस जंगल की कटाई की जा रही है, उसे महाजेनको को आबंटित किया गया है और इसे अदानी ग्रुप द्वारा संचालित किया जा रहा है। क्षेत्रीय ग्रामीणों ने जंगल में बड़े पैमाने पर वृक्षों की कटाई का विरोध किया है,उनका कहना है कि इससे उनके जीवन, आजीविका और पर्यावरण पर बुरा असर पड़ेगा। ग्रामीणों का आरोप है कि पेड़ों की कटाई के लिए ग्राम सभा से कोई अनुमति नहीं ली गई है, यह पूरी तरह से अवैध है। विरोध प्रदर्शन के दौरान कई ग्रामीणों सहित पर्यावरण कार्यकर्त्ताओं और सियासतदारों को भी हिरासत में लिया गया है।




इस पूरे मामले में हकीकत की तहकीकात में तह तक जाकर देखें तो जो हकीकत की तस्वीरें सामने आ रही है, वह चौंकाने वाली है। जन समस्याओं और पर्यावरण को लेकर हमेशा तत्पर रहने वाले आदिवासी नेता राजेश सिंह मरकाम ने स्थानीय ग्रामीणों की तरफ से बड़े ही गंभीर और महत्वपूर्ण सवाल खड़े किये हैं। कांग्रेस विधायक विद्यावती सिदार और पूर्व मंत्री भाजपा नेता सत्यानंद राठिया की गिरफ्तारी पर उन्होंने कहा है कि जंगल बचाने के लिए पिछले चार माह से क्षेत्र की जनता आंदोलनरत है, ये इतने दिन से कहाँ थे,जब जंगल कट रहा था? आज जंगल कट गया तो अपनी साख बचाने ग्रामीणों के समर्थन में आ कर गिरफ्तार हो गये। नागरमुड़ा के जंगल को बचाने के लिए ग्रामीण चार महीने से आंदोलन कर रहे थे, विधायक विद्यावती सिदार और बीजेपी नेता सत्यानंद राठिया दोनों का घर यहाँ से एक-एक कि.मी. की दूरी पर है, क्या इनको पता नहीं है? जबकि विधिवत लिखित रूप से दोनों पक्षों को अवगत कराया गया था कि फर्जी ग्रामसभा लगाया गया है। सरकार द्वारा बिना ग्रामसभा सहमति के जंगल कटाई की अनुमति दी गयी है। यही नहीं, एन.जी.टी. में केस चल रहा है उसके बावजूद भी पेड़ों की कटाई चल रही है। उस समय विरोध या गिरफ्तारी देने क्यों नहीं आये? यदि चार दिन पहले ही खड़े हो जाते तो शायद आज ये जंगल नहीं कटते।



आगे उन्होंने कहा कि अब पाता गाँव की बारी है, यहाँ 80 एकड़ जंगल कटना है, उधर नागरमुड़ा आंदोलन चल रहा है क्या उस जंगल को बचाने के लिए ये सियासतदार समय रहते गिरफ्तारी देने आएंगे या जंगल कटने के बाद आएंगे? ग्रामीण चाहते हैं कि हमारी जमीन पर परियोजना नहीं लगनी चाहिए तो क्या ये सियासतदार परियोजना को निरस्त कराने के लिए सड़क या विधानसभा में बात रखेंगे?



बहरहाल, मुड़ागांव में जंगल की कटाई एक विवादास्पद मुद्दा बन गया है। एक तरफ खनिज सम्पदा है तो दूसरी तरफ वन सम्पदा, जबकि दोनों में से किसी एक को ही चुनना होगा, और हाँ! इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि पर्यावरण वन सम्पदा का साथ देगा न कि खनिज सम्पदा का। अब देखना यह है कि विकास के हवनकुण्ड में किसकी आहुति दी जाएगी?

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