💥औद्योगिक प्रदूषण से कराहता पूँजीपथरा क्षेत्र, बढ़ रहा विनाश की ओर।
💥क्षेत्र के विकास के नाम पर ऐश कर रहे धनबली और बर्बादी के कगार पर पहुँचा पर्यावरण।
💥भूमिपुत्रों और श्रमवीरों की आयी शामत, मजदूर हो रहे शोषण के शिकार तो माथा पीट रहे किसान।
तहतक न्यूज/पूँजीपथरा।
विकास… विकास… विकास.. आखिर क्या है विकास की परिभाषा? आम जनता को कुछ समझ में नहीं आ रहा है। जुमलों में विकास की गंगा सुनते हैं जो वास्तव में केवल धनपतियों के लिए है और आम जनता के लिए यह कथित विकास, विनाश की कर्मनाशा दिखायी देती है। आपको मालूम होगा कि सोनभद्र से निकलने वाली एक ऐसी शापित नदी है कर्मनाशा जिसके पानी को लोग छूना तक पसंद नहीं करते। ऐसे ही विकास की नदी बह रही है छत्तीसगढ़ के जिले रायगढ़ के औद्योगिक तीर्थ पूँजीपथरा में जहाँ यह नदी उद्योगपतियों और भ्रष्टाचारियों के लिए गंगा साबित हो रही है तो वहीं आम जनों के लिए कर्मनाशा।
आपको बता दें कि "यथा नाम तथा गुण" इस कहावत को चरितार्थ करता पूँजीपथरा वास्तव में पूंजी बढ़ाने वाला पारस पत्थर जैसा है लेकिन इस पारस पत्थर पर एकाधिकार पूँजीपतियों ने कर रखा है। उद्योग खुलने से पहले यह इलाका नैसर्गिक सौंदर्य और वन सम्पदा से भरपूर शुद्ध प्राकृतिक वातावरण से युक्त हुआ करता था लेकिन कथित विकास के आड़ में जब से उद्योग स्थापित हुए हैं तब से केवल धन कुबेरों और भ्रष्टाचारियों का ही विकास हुआ है। उन्नति के लालच में किसानों ने अपने पुरखों की बनायी अचल संपत्ति को सौंप कर अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली।
आज इस क्षेत्र में दर्जनों उद्योग स्थापित हैं प्रतिदिन हजारों भारी वाहन चौबीस घंटे दौड़ रहे हैं, लाखों-करोड़ों के वारे-न्यारे हो रहे हैं, इस क्षेत्र को दुधारू गाय की तरह लगातार दुहा जा रहा है लेकिन बचाये रखने के लिए कोई ध्यान नहीं दे रहा है। प्रदूषण इस कदर बढ़ा हुआ है कि यहाँ इंसान तो क्या जानवर भी त्रस्त हैं। क्षेत्र में प्रदूषण खतरनाक स्तर से भी ऊपर बढ़ गया है इस सम्बन्ध में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने अब और उद्योग की स्थापना या विस्तार नहीं करने के निर्देश भी जारी किये हैं किन्तु प्रदूषणकारी एक और उद्योग, आगामी 23 दिसंबर को पूँजीपथरा के तुमीडीह में "प्रिस्मो स्टील एंड पॉवर लिमिटेड" की स्थापना के लिए पर्यावरणीय जनसुनवाई आयोजित की गयी है। उल्लेखनीय है कि पूँजीपथरा क्षेत्र के दर्जनों गाँव भयंकर प्रदूषण की चपेट में हैं, उड़ते फ्लाई ऐश और चिमनियों से निकलते जहरीले काले डस्ट से खेती-बाड़ी पूरी तरह से प्रभावित है। महुआ, चार, तेंदु हर्रा, बहेरा, आँवला इत्यादि के पेड़ बाँझ हो चुके हैं। किसान खेती करना छोड़ खाद्य सुरक्षा अधिकार के तहत सोसायटी के चावल पर जीने को मजबूर हैं।
प्रदूषणकारी प्रिस्मो कंपनी के होने जा रहे जनसुनवाई से इलाके के सैकड़ों ग्रामीण बेहद आक्रोशित हैं। गाँव के गलियारों में ही नहीं बाहर हाट बाजारों में भी विरोध के स्वर उठ रहे हैं। महिलाएं जो प्रदूषण से ज्यादा परेशान होती हैं वे अब जागरूक हो गयी हैं और उनके बीच भी चर्चाओं का सिलसिला जारी है। ऐसे में प्रिस्मो स्टील एंड पॉवर लिमिटेड की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। क्षेत्र में बढ़ते प्रदूषण और बेरोजगारी के तहतक की बात करें तो कम्पनियाँ प्रदूषण रोकने के उपायों पर कोई ध्यान नहीं देतीं और न ही स्थानीय लोगों को रोजगार। देती भी है तो रेजा कुली का काम वह भी 8 की बजाय 12 घंटे का होता है। यदि इन दोनों बातों पर शासन-प्रशासन गंभीरता पूर्वक ध्यान दे तो विरोध की बात ही नहीं होती।