
✍🏻प्रधानमंत्री ग्राम सड़क का हो रखा है बुरा हाल।
✍🏻कई बार हुआ आंदोलन, नतीजा वही ढाक के तीन पात।
✍🏻प्रशासन, प्लांट और ग्रामीण तीनों राजी! फिर भी नहीं बना 200 मी. का रोड।
तहतक न्यूज/गेरवानी। आमतौर पर ग्रामीण जन भीरू स्वभाव के सीधे, सरल व भोले-भाले होते हैं और यही वजह है कि वे अक्सर ठगे जाते हैं। ऐसी ही ठगी का एक नमूना देखने को मिला है जिला मुख्यालय से तेरह किमी. दूर गेरवानी क्षेत्र में जहाँ बड़े-बड़े उद्योग कुंडली मार के बैठे हैं।

बरसों पहले प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत इस क्षेत्र के सभी गाँव को पक्की सड़क बना कर मुख्य मार्ग से जोड़ा गया था ताकि बीहड़ वन क्षेत्रों में बसे ग्रामवासियों का आवागमन बारहों महीने सुगमता पूर्वक हो सके। 12 टन की भार क्षमता वाले पक्की सड़क से लोग बेहद खुश थे। किन्तु इस क्षेत्र के विकास के नाम पर जब से उद्योगों की स्थापना हुई है तब से भारी ट्रक-ट्रेलर की आवाजाही से सड़कों की हालत दयनीय हो गयी है। ग्रामीणों को आने-जाने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। स्कूली बच्चे भी इसी रास्ते आना-जाना करते हैं। दुर्घटना का हमेशा भय बना रहता है। ग्रामीण जन इस समस्या को लेकर शासन-प्रशासन से कई बार गुहार लगाए हैं जब कोई सुनवाई नहीं हुई तो चक्काजाम जैसे आंदोलन के लिए ग्रामीणों को बाध्य होना पड़ा। विधानसभा चुनाव से पहले दो बार आर्थिक नाकेबंदी भी कर लिए लेकिन कोई समाधान नहीं हुआ। पिछले आंदोलन में जब ग्रामीणों ने उग्र रूप दिखाया था तो प्रशासन, उद्योग प्रतिनिधियों और ग्रामीणों के बीच त्रिपक्षीय वार्ता में तय हुआ था कि चौक से हर्ष पेट्रोल पंप तक सीसी रोड बनाया जायेगा जिसका बजट चालीस लाख का बना था और उस रोड से सम्बंधित एन आर इस्पात, रायगढ़ इस्पात, माँ काली अलायज, नव दुर्गा, रूपानाधाम, सुनील स्पंज सहित अन्य सभी प्लांट उक्त राशि का भुगतान करेंगे किन्तु आज तक किसी ने ध्यान नहीं दिया और इस प्रकार भोले-भाले ग्रामीणों को केवल आश्वासन का झुनझुना थमा कर मुँह बन्द कर दिया गया।
इसी तरह लाखा से चिराईपानी तथा पाली देलारी मार्ग में भी 30 से 50 टन तक ओवर लोडेड गाड़ियाँ चल रही हैं जिससे सड़क बड़े-बड़े गड्ढों में तब्दील हो गये हैं। मानसून करीब है अंदाजा लगाया जा सकता है कि बारिश होने पर इन सड़कों की क्या दुर्दशा होगी और राहगीरों तथा स्कूली बच्चों की क्या हालत होगी?

सवाल उठता है कि
💥जब प्रधानमंत्री ग्राम सड़क में बारह टन से अधिक भार ढोने वाले वाहनों का प्रवेश प्रतिबंधित हैं तो इन पर कार्यवाही क्यों नहीं होती?
💥औद्योगिक घराने इस क्षेत्र से करोड़ों कमा रहे हैं और इस सड़क का इस्तेमाल कर रहे हैं तो स्वमेव मरम्मत क्यों नहीं कराते? सामाजिक उत्तर दायित्व का दिखावा कागजों पर क्यों?
💥चुनाव के समय जनता का पाँव छूने वाले नेता पद पाने के बाद कहाँ नदारद हो जाते हैं?
💥जब जनता को ही सड़क पर उतरना है तो विधायक और मंत्री किस काम के?
ऐसे अनेकों सवाल जनता के मन में उठ रहे हैं परन्तु जवाब किसी के पास नहीं है। बहरहाल आम ग्रामीणों द्वारा एक बार फिर आवेदन-निवेदन कर जोहार-गुहार लगायी जा रही है इसी उम्मीद के साथ कि इस बार डबल इंजन की नई सरकार है, हो सकता है उनकी मांगें बिना आंदोलन के पूरी हो जाय।