
तहतक न्यूज/रायगढ़, छत्तीसगढ़।
भारत एक लोकतान्त्रिक देश है, जहाँ ये कहा जाता है कि यहाँ जनता का राज है, क्योंकि सत्ता की कुर्सी में बैठने वाला आम जनता का ही चुना हुआ प्रतिनिधि विराजमान होता है अर्थात् देश में जनता की हुकूमत। सात समुन्दर पार के देशों में रहने वाले लोग भी यही मानते हैं कि भारत एक बहुत ही खूबसूरत, शक्तिशाली और शानदार जगह है जहाँ की सरकार स्वयं जनता की होती है। बात करें छत्तीसगढ़ की तो यहाँ की शासन व्यवस्था इतनी दुरुस्त है कि इसको लेकर “सुशासन तिहार” जैसे लोक-लुभावन कार्यक्रम भी धूमधाम से मनाया गया है। अब ऐसे में भला कोई कैसे नहीं मानेगा कि प्रदेश की प्रजा बहुत खुश है, लेकिन रायगढ़ जिले की बात करें तो यहाँ की आबो-हवा की जो तस्वीरें सामने आ रहीं हैं वह सुशासन की परिभाषा को ही कहीं न कहीं बदलती नजर आ आ रही है। आम जनता के चेहरे में नाराजगी, चिंता, दुख और विरोध के लक्षण स्पष्ट देखने को मिल रही है।

उल्लेखनीय है कि रायगढ़ जिले में उद्योगों व खदानों की अंधाधुंध स्थापना से क्षेत्रीय जनता गंभीर प्रदूषण की मार झेलती आ रही है, जिसे लेकर आये दिन धरना, रैली और विरोध प्रदर्शन होते आ रहे हैं, इसके बावजूद 14 अक्टूबर को तमनार क्षेत्र में एक और कोयला खदान के लिए जनसुनवाई निर्धारित की गयी है, जिसके खिलाफ विरोध की चिंगारी उठने लगी है। तमनार के धौराभांठा गांव में 14 अक्टूबर को जिंदल पॉवर लिमिटेड की प्रस्तावित जनसुनवाई को रद्द कराने की मांग को लेकर प्रभावित दर्जनों गांवों के हजारों की संख्या में ग्रामीण जिनमें महिलाएं, पुरुष, बुजुर्ग और बच्चे शामिल थे आज रायगढ़ जिला मुख्यालय पहुंचे।
प्रभावित ग्रामीणों ने बीच शहर में भारी रैली निकालते हुए कलेक्ट्रेट कार्यालय पहुंचकर जिला प्रशासन को ज्ञापन सौंपा। किसानों की मानें तो उन्हें अब और कोई कोयला खदान नहीं चाहिए, क्योंकि इससे क्षेत्र में विकास की बजाय सिर्फ विनाश, दुर्घटना और प्रदूषण ही बढ़ा है। ग्रामीणों ने बताया कि खदानों से निकलने वाली धूल, बारूद और कोयले से निकलने वाली गैस से जहाँ वायु प्रदूषण हो रहा है वहीं जल प्रदूषण से उनके खेत, पानी और स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है।
स्थानीय जन-प्रतिनिधियों ने बताया कि जब से प्रशासन ने 14 अक्टूबर को जनसुनवाई कराये जाने का नोटिफिकेशन जारी किया है तब से हमारी लड़ाई जारी है और जनसुनवाई के खिलाफ लड़ाई आगे भी जारी रहेगी। उन्होंने यह भी कहा कि अगर जनसुनवाई निरस्त नहीं हुई तो 14 अक्टूबर से पहले ही भजन-कीर्तन और सत्संग के लिए टेंट लगाकर बैठेंगे, ताकि प्रशासन वहां जनसुनवाई का टेंट न लगा सके। फिलहाल स्थानीय सामाजिक संगठनों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने भी ग्रामीणों के इस विरोध को समर्थन दिया है, जिससे लगता है कि आने वाले दिनों में तमनार क्षेत्र में किसान और स्थानीय ग्रामीणों का यह आंदोलन और व्यापक रूप ले सकता है और अब यह देखना लाजिमी होगा कि जनसुनवाई स्थल धौराभाठा में टेंट का खूंटा जिंदल का गड़ता है या जनता का? या फिर…. निकट दिवाली है कहीं सरस्वती के मुकाबले लक्ष्मी का ध्वज न फहर जाय !