तहतक न्यूज/रायगढ़ : क्या आपको पता है तापमान क्यों इतना बढ़ रहा है? बेमौसम बारिश क्यों हो रही है? ठण्ड का समय कम क्यों होता जा रहा है? इसके अलावा कुछ और भी बातें हैं जैसे दुपहिया, तिपहिया वाहनों में अचानक आग लग जा रही है तो कहीं रेफ्रीजरेटर में विस्फोट की खबरें आ रही हैं।
दिन चढ़ते ही शहरों के चौक-चौराहों पर अघोषित कर्फ्यू जैसा वातावरण दिखाई दे रहा है। दोपहर में कूलर-पंखे भी आग उगलते महसूस हो रहे हैं। गर्मी को लेकर लोगों में हाहाकार मचा हुआ है फिर भी धीरे-धीरे साल दर साल बढ़ रहे धरती के तापमान पर कोई गंभीर नहीं है। गर्मी से बचने लोग केवल वैकल्पिक व्यवस्था में लगे हैं। बढ़ते तापमान के पीछे जो मानवीय कारण हैं उसे समझने की कोशिश कोई नहीं कर रहा है, यदि ऐसी ही स्थिति रही तो आने वाले कुछ ही अरसों में तापमान पचास-पचपन के पार चला जायेगा और आम जनजीवन को कई मुसीबतों का सामना करना पड़ेगा।
💥वनों का हो रहा सफाया ~
विकास के नाम पर वृहत उद्योगों को बढ़ावा दिया जा रहा है जाहिर है कि उसकी स्थापना के लिए एक बड़े भू भाग की आवश्यकता होती है और इसके लिए एक मात्र जंगल ही बचे हैं जिसे बिना सोचे-समझे काटा जा रहा है।
💥उद्योगों की भट्ठीयों से बढ़ रहा तापमान ~
रायगढ़ जिले में सौ से अधिक छोटे-बड़े कल-कारखाने स्थापित हैं, इनमें ज्यादातर ऐसे लौह-कारखाने हैं जहाँ उच्चतम तापमान की विद्युत भट्ठीयां हमेशा सुलगते रहते हैं। इस्पात एवं पॉवर कंपनियों में सैकड़ों टन कोयले जल रहे हैं जिससे आसपास का वातावरण सदैव गरम रहता है।
💥वाहनों की बढ़ती संख्या ~
औद्योगिक क्षेत्रों में माल परिवहन के लिए भार वाहक बड़े वाहनों का इस्तेमाल ज्यादा होता है। यहाँ दर्जनों नहीं, सैकड़ों नहीं, वरन हजारों की संख्या में ट्रक-ट्रेलरों की चौबीसों घंटे आवा-जाही होती रहती है जिससे उनके इंजन की गर्मी से हवाएं गरम रहती हैं।
💥वृक्षारोपण महज एक दिखावा ~
औद्योगिक घराने हों या शासन-प्रशासन, वन विभाग हो या पर्यावरण विभाग या फिर सामाजिक संस्थाएं, हजारों-लाखों खर्च कर वृक्षारोपण कार्यक्रम में फोटो खिंचवाकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेते हैं। आंकड़ों में जितने पौधों की संख्या बताई जाती है कालांतर में उसके दस प्रतिशत पेड़ भी नजर नहीं आते।
वास्तव में सच्चाई की तहतक की बात करें तो दिखावा कर अपने आपको धोखे में रखने की बजाय पौधे लगाकर पेड़ बनने तक उनकी रक्षा भी करें और हमारे आसपास जो वृक्ष मौजूद हैं या जंगल हैं उसे किसी स्वार्थ के लिए कटने न दें। हर इंसान यही कहता है कि वो जो कुछ कर रहा है अपने परिवार और आने वाली पीढ़ी के लिए कर रहा है परन्तु यह नहीं सोचता कि जिसके लिए वो धन कमा रहा है उसे जीने के लिए शुद्ध पर्यावरण की भी जरुरत होगी जो खरीदने से नहीं मिलती।
चीख रही धरती …रो रहा आकाश…तप रहा है सूरज और जल रहा है इंसान
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