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tahtaknews.com > Blog > आसपास > विकास के नाम पर जहरीले वातावरण में जीने को मजबूर है मानव जनजीवन

विकास के नाम पर जहरीले वातावरण में जीने को मजबूर है मानव जनजीवन

Pancham Singh Thakur By Pancham Singh Thakur 25 April 2024 4 Min Read
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तहतक न्यूज/रायगढ़ > छत्तीसगढ़ की प्राचीन नगरी रायगढ़ जो कि अब स्टील सिटी के रूप में जाना जाता है और विश्व के मानचित्र में अपना अलग स्थान रखता है लेकिन यहाँ का आम ग्रामीण जनजीवन बद से बदतर हो चला है। क्षेत्र के विकास के नाम पर यहाँ केवल धनकुबेरों के खजाने भरे जा रहे हैं और आम जनता हाथ मलती और सिर धुनती नजर आ रही है।
थाना पूंजी पथरा क्षेत्रान्तर्गत अनेकों छोटे-बड़े उद्योग स्थापित हैं जो पर्यावरणीय नियमों को ताक में रख कर मनमाने ढंग से प्रदूषण फैला रहे हैं और समूचे वातावरण में जहर घोल रहे हैं।
💥सांझ ढलते ही शुरू होता है विषाक्त धुओं का तांडव :-
अंधेरा होते ही उद्योगों से निकलने वाले खतरनाक रसायन युक्त धुएँ और धूल के गुबार पूरे वातावरण में इस कदर छा जाते हैं कि लोगों का घर से बाहर निकलना मुश्किल हो जाता है। पर्यावरण विभाग की बात करें तो ऐसा लगता है कि विभाग केवल दिन के उजाले में ही कार्यवाही करती है और उद्योग इसी लापरवाही का फायदा उठा कर रात के अँधेरे में मनमानी करते हैं और डस्ट रोकने वाले यन्त्रों के स्विच ऑफ कर देते हैं।
💥हरियाली की जगह करियाली ही करियाली :-
ये तो सभी जानते हैं कि जंगल हो या गाँव-देहात, चारों तरफ पेड़-पौधे हरे-भरे होते हैं लेकिन इस क्षेत्र की बात करें तो सारे पेड़-पौधे काले नजर आते हैं। घर हो या आँगन, कपड़े,बिस्तर,बर्तन,कुर्सी-टेबल के अलावा घर के सारे साजो-सामान में राख की काली परत हमेशा दिखाई देती है।घर की साफ-सफाई में महिलाओं के ऊपर अतिरिक्त बोझ बढ़ जाने से कई परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
💥बाड़ी में लगे साग-सब्जियों पर भी बुरा असर :-
उद्योगों और वाहनों से फैल रहे प्रदूषण से बाड़ी में लगे साग-सब्जियां भी मुर्झा कर सूख रहे हैं। किसान मेहनत कर गोभी,टमाटर,मूली, पालक,धनिया आदि लगा तो रहा है किंतु पौधों में उद्योगों से निकलने वाले राख के जमने से फूल व फल नहीं लग रहा जिससे उन्हें आर्थिक हानि उठानी पड़ रही है। कुछ किसान शासकीय योजनान्तर्गत सोलर पंप लगा रखे हैं मगर डस्ट जमने के कारण पम्प भी ठीक से नहीं चल पा रहे हैं।
💥स्वास्थ्य में आ रही गिरावट :-
उद्योगों के आसपास ग्रामीण इलाकों में प्रदूषण के कारण लोगों के स्वास्थ्य में आ रही गिरावट से इनकार नहीं किया जा सकता। सिलकोसिस, चर्म रोग एवं श्वांस संबंधी बीमारियों के बढ़ने की आशंका हमेशा बनी रहती है। कुछ तो इसकी चपेट में आ भी चुके हैं।आमतौर पर ग्रामीण मेहनती होते हैं लेकिन इस क्षेत्र के लोगों में कार्य-क्षमता में कमी व नशे की ओर बढ़ती प्रवृत्ति देखी जा सकती है।

प्रदूषण ओद्योगिक हो या चाहे अन्य किसी भी प्रकार का,हमारे सेहत व प्रकृति के लिए बेहद खतरनाक है। पर्यावरण किसी एक का नहीं है और न ही गरीब,मजदूर या किसान का है यह सबका है इसलिए हम सब का कर्त्तव्य बनता है कि पर्यावरण को बचाएं तभी हम रह पायेंगे। याद रखें, प्रकृति-प्रदत्त इस अनमोल उपहार को पैसे दे कर कभी नहीं खरीदा जा सकता।

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