तहतक न्यूज/रायगढ़।
राजस्व विभाग में भ्रष्टाचार इस कदर सिर चढ़ कर बोल रहा है कि कब किसकी जमीन किसके नाम हो जाय कुछ कहा नहीं जा सकता। अगर आपके पास कोई जमीन है और उसका पट्टा आपके नाम पर है, किसान किताब (ऋण पुस्तिका) आपके हाथ में है तो पर भी चैन की वंशी बजाने के बजाय एक बार जाँच अवश्य कर लें क्योंकि भ्रष्टाचार के इस जमाने में क्या पता कब आपकी जमीन किसी दूसरे के नाम चला जाय और आप हाथ मलते रह जायें। जी हाँ, ऐसा ही कुछ गड़बड़झाला चल रहा है रायगढ़ जिले में, जिसकी बानगी जन-दर्शन में देखने को मिली।
आपको बता दें कि जिले के सम्बलपुरी निवासी मोहन लाल केवट ने कलेक्टर जन दर्शन में एक शिकायत दर्ज करायी है जिसमें उसने उसके जमीन के कराये जा रहे जबरन सीमांकन और पंचनामा पर रोक लगाने की माँग की है।
दरअसल प्रार्थी मोहन लाल केवट के पिता स्व. कुशवा केवट निवासी ग्राम सम्बलपुरी तह. व जिला रायगढ़ को शासन द्वारा ग्राम सम्बलपुरी में तत्कालीन प.ह.नं. 34 वर्तमान 31 में स्थित शासकीय भूमि ख.नं. 108 से रकबा 1.214 हे. भूमि प्रदान की गयी थी।
उक्त भूमि को बिना कलेक्टर के अनुमति के कुशवा केवट को धोखे में रख कर श्रीमती सुधा अग्रवाल द्वारा क्रय कर कालांतर में सूरज मोहन शर्मा पिता सी.एल. शर्मा एवं नरेन्द्र पाल सिंह पिता अजायब सिंह को विक्रय कर दिया था। इस भूमि के विक्रय के सम्बन्ध में जानकारी न तो मोहन लाल को थी और ना ही उसके पिता को थी। जब सूरज मोहन शर्मा एवं नरेंद्र पाल सिंह की ओर से विशाल सिंघानिया और उसके भाई विवेक सिंघानिया द्वारा कब्जा किया जाने लगा तो आवेदक द्वारा 11/10/2021 को जन-चौपाल कार्यक्रम में तथा 30/11/2021 को थाना चक्रधर नगर में लिखित शिकायत की गयी। कोई कार्यवाही नहीं होने पर 02/03/2022 को सिविल न्यायालय रायगढ़ के समक्ष आवेदक की ओर से स्वत्व की घोषणा एवं स्थायी निषेधाज्ञा प्राप्त करने हेतु दावा प्रस्तुत किया गया जो वर्तमान में न्यायालय में लंबित है और उसकी आगामी सुनवाई 20/12/2024 को नियत है।
मोहन लाल ने बताया कि अनावेदक की सांठ-गांठ से 14/12/2024 को हल्का पटवारी और आर.आई. सीमांकन करने पहुँचे थे। उसने जब मना किया और लिखित आपत्ति दिया तो उन्होंने लेने से इंकार कर दिया और बिना नाप-जोख किये चले गये।
आवेदक को आशंका है कि आर.आई. और पटवारी अनावेदक गण से मिलीभगत कर उक्त भूमि का झूठा सीमांकन प्रतिवेदन एवं पंचनामा तैयार कर सकते हैं।
मामले की तह तक जाकर देखा जाय तो जो तथ्य सामने आ रहे हैं उससे यही प्रतीत होता है कि गरीब ग्रामीणों की कोई अहमियत नहीं है। मोहन लाल की पहुँच यदि ऊपर तक होती तो शायद ये नौबत नहीं आती। मोहन जैसे ना जाने ऐसे और भी कई लोग होंगे जो फर्जीवाड़े के शिकार होकर भटक रहे होंगे। धोखाधड़ी के इस मामले के सामने आने से जहाँ राजस्व विभाग की कार्यशैली संदेह के दायरे पर घूमती नजर आ रही है तो वहीं भूमि स्वामियों के माथे पर चिंता की लकीरें उभर रही हैं। फिलहाल मोहन ने न्याय की गुहार जन-दर्शन में लगायी है और अब यह देखना लाजिमी होगा कि पीड़ित को यथा शीघ्र न्याय मिल पाता है या फिर कानूनी दाँव-पेंच के साथ होगी लम्बी इंतजारी।