
तहतक न्यूज/रायगढ़, छत्तीसगढ़।
जिले में स्थापित छोटे-बड़े सभी उद्योगों में कामगारों के सुरक्षा के प्रति भारी लापरवाही देखी जा रही है। विशेषकर ठेका श्रमिकों की जान की कोई कीमत नहीं रह गयी है। उनकी बेरोजगारी, मजबूरी और गरीबी का नाजायज फायदा उठाते हुए जानवरों की तरह इनका इस्तेमाल हो रहा है। यही कारण है कि पूरे औद्योगिक क्षेत्र में मौत और प्रदूषण का साया राहु व केतु की तरह मंडरा रहा है और मजदूरों के हित की बात करने वाले मजदूर संगठन हों या श्रम विभाग केवल औपचारिकता निभाने वाले दूत नजर आ रहे हैं। घटना कभी-कभार हो तो समझ में आती, लेकिन यहाँ तो कंपनियों में काम कर रहे श्रमिक आये दिन दुर्घटना के शिकार हो रहे हैं। कोई गर्म राख में जल कर मर रहा है, कोई भट्ठी में गिर कर राख हो जा रहा है तो कोई बिना सेफ्टी बेल्ट के ऊँचाई से गिर कर काल के गाल में समा रहा है। हद तो तब हो जाती है जब बिना किसी सुरक्षा के लिफ्ट से गिर कर एक साथ कई मजदूर मारे जाते हैं। इसी क्रम में इंड सिनर्जी में हुए एक हादसे में बिहार के एक नवयुवक की दर्दनाक मौत होने का मामला प्रकाश में आया है।
दरअसल, बीते मंगलवार कंपनी के हॉपर के प्लेटफार्म में चैनल वेल्डिंग के दौरान लगभग 15 मीटर ऊपर से वेल्डर इस कदर नीचे गिरा कि उसकी जान ही चली गयी।उसे असमय अपनी जान गंवानी पड़ गई। चक्रधर नगर पुलिस घटना की जांच पड़ताल कर रही है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार औरंगाबाद जिले के ग्राम देउरी नेवरा निवासी श्रीकांत कुमार सिंह पिता अर्जुन सिंह (21 वर्ष) रायगढ़ के कोटमार में संचालित इंड सिनर्जी पावर प्लांट में पिछले दो साल से एजी कंट्रक्शन में ठेकेदार अदालत गिरी के मातहत वेल्डर का काम करता था। कल यानी 14 अक्टूबर की शाम से रात उसकी ड्यूटी थी।बताया जाता है कि कंपनी के स्टॉक हाउस के पास हॉपर में प्लेरफॉर्म बनने का काम चल रहा था जहाँ देर शाम लगभग साढ़े 6 बजे श्रीकांत हॉपर में लगभग 48/49 फीट ऊपर प्लेटफार्म में चढ़कर चैनल वेल्डिंग का काम कर रहा था। इस दौरान अचानक उसका शारीरिक संतुलन बिगड़ा और नीचे गिर गया। गंभीर रूप से घायल श्रीकांत को रायगढ़ के बालाजी मेट्रो हॉस्पिटल लाया गया, जहां चिकित्सकों ने प्राथमिक परीक्षण में उसे मृत घोषित कर दिया।
निरंतर हो रहे इस प्रकार के दर्दनाक हादसों ने इतना तो स्पष्ट कर दिया है कि श्रमिकों की सुरक्षा व हित के लिए बनाये गए कानून और नीति-नियमों की खुलेआम धज्जियाँ उड़ाई जा रही हैं। चंद रूपये बचाने के फेर में प्रबंधनों या ठेकेदारों द्वारा श्रमिकों को सुरक्षा उपकरण उपलब्ध नहीं कराया जाता। जिम्मेदार अधिकारियों की सतत निगरानी व ठोस कार्यवाही होती रहती तो श्रीकांत कुमार सिंह आज जीवित होता और उसके परिजनों को आजीवन पछताना नहीं पड़ता। यह भी एक विडंबना है कि श्रमिकों के हित व सुरक्षा की ढोल पीटने वाले कई मजदूर संगठन हैं जो केवल घटना के समय उपस्थिति दर्ज कर अपनी कर्तव्यों की इतिश्री कर लेते हैं। बात करें श्रम कानून की तो आम लोगों को यही समझ में आता है कि गरीब इंसान के लिए मजदूरी का पेशा ही सबसे बढ़िया पेशा है, परन्तु यह एक यक्ष प्रश्न बन गया है कि औद्योगिक सुरक्षा, श्रम विभाग, मानवाधिकार संगठन तथा मजदूर संगठन के होते हुए भी श्रमिक शोषण और दुर्घटना के शिकार क्यों हो रहे हैं?