
तहतक न्यूज/घरघोड़ा-रायगढ़, छत्तीसगढ़।
यह तो सभी जानते हैं कि प्राचीन काल से ही जर, जोरू और जमीन ने इंसान को हमेशा आकर्षित किया है और इसकी मायाजाल में फँस कर वही इंसान बर्बाद होते आया है। फिर भी लोग सुधरने का नाम ही नहीं ले रहे हैं और लालच में इतने अंधे हो जा रहे हैं कि अपने खून के रिश्तों का भी खून करने से बाज नहीं आ रहे हैं। ऐसे ही एक हृदय विदारक घटना की तस्वीर सामने आयी है जिसमें कलयुगी बेटे ने अपने ही पिता की गला घोंट कर हत्या कर दी।
प्राप्त जानकारी के अनुसार घरघोड़ा पुलिस ने रायकेरा में हुए सनसनीखेज दोहरे हत्याकांड का खुलासा 24 घंटे में कर दो आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है। बताया जा रहा है कि हत्या का कारण एनटीपीसी द्वारा दिए गए मुआवजा राशि के बंटवारे को लेकर चल रहा पुराना विवाद था। बीते दिनों 3 अक्टूबर को ग्राम रायकेरा के कोटवार संकीर्तन राठिया ने पुलिस को सूचना दी थी कि गांव के घुराऊ राम सिदार (55) और उनकी सास सुकमेत उर्फ सुखमेत सिदार (70) का शव उनके ही घर की परछी में पड़ा है। दोनों की गला घोंटकर हत्या की गई थी। सूचना मिलते ही एसडीओपी धरमजयगढ़, घरघोड़ा पुलिस, एफएसएल की टीम मौके पर पहुंची। जांच के दौरान पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में दोनों की मौत गला दबाने और मारपीट के कारण होने की पुष्टि हुई, जिसके बाद पुलिस ने मृतक के बेटे रविशंकर सिदार और रामप्रसाद सिदार से पूछताछ की। दोनों ने पूछताछ में जुर्म कबूल करते हुए बताया कि मृतक घूरऊ राम सिदार और आरोपी रामप्रसाद के बीच एनटीपीसी के मुआवजा रकम को लेकर लंबे समय से विवाद चल रहा था। पहले भी कई बार इनका झगड़ा विवाद हो चुका था। मृतक के बेटे रविशंकर सिदार को रामप्रसाद सिदार के उकसाने पर पूर्व में अपने पिता घुराउ राम सिदार को कई बार मारपीट कर चुका था। इसी रंजिश में 2 अक्टूबर की शाम को रविशंकर सिदार और रामप्रसाद सिदार एक साथ मिले और रविशंकर ने अपने पिता घुराउ राम की रस्सी से गला घोंटकर हत्या कर दी। घटना को देखकर जब सुखमेत ने विरोध किया तो उसकी भी आरोपियों ने गला दबाकर हत्या कर दी।
इस प्रकार जमीन के मिले मुआवजे की रकम ने जहाँ घूरऊ राम और उसकी सास सुकमेत की जान ले ली वहीं रविशंकर और रामप्रसाद को कातिल बना दिया पुलिस ने दोनों आरोपियों रविशंकर सिदार (26) और रामप्रसाद सिदार उर्फ गरिहा (83) निवासी रायकेरा मांझापारा को गिरफ्तार कर न्यायिक रिमांड पर भेज दिया है।
अब सवाल उठता है कि हाईटेक के इस जमाने में जहाँ कोई भी अपराधी कानून और पुलिस के शिकंजे से बच नहीं सकता, वो घटना को अंजाम देने से पहले आखिर क्यों नहीं सोचता कि एक न एक दिन पकड़ा जायेगा और पूरी जिंदगी जेल की काल कोठरी में बितानी पड़ेगी। मरने वाला मर जाता है और मारने वाला सलाखों के पीछे चला जाता है, किन्तु इनके परिवारों का क्या दोष है जो कोर्ट-कचहरी के चक्कर और अपमान, उलाहना जैसी स्थिति से आजीवन गुजरने को मजबूर हो जाते हैं। सभ्य समाज के लिए यह एक यक्ष प्रश्न बन कर रह गया है।