
तहतक न्यूज/लैलूंगा-रायगढ़, छत्तीसगढ़।
जिले के वन क्षेत्रों में बसे गाँवों में जंगली हाथियों का कहर दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है और निरीह ग्रामीणों की अकाल मौत की खबरें लगातार देखने को मिल रही है। इसी कड़ी में धरमजयगढ़ वन मंडल के अंतर्गत लैलूंगा वन परिक्षेत्र में मंगलवार रात को मादा हाथी और उसके शावक ने जमकर उत्पात मचाया। इस भयानक घटना में तीन ग्रामीणों की जान चली गई, जिसमें एक मासूम बच्चा भी शामिल है। इस ह्रदयविदारक घटना से पूरे क्षेत्र में भय और सनसनी फैल गयी है।
मिली जानकारी के मुताबिक लैलूंगा वन परिक्षेत्र के ग्राम गोसाईडीह में रात एक बजे के लगभग मादा हाथी अपने शावक के साथ पहुँची और एक घर के आँगन में लगे केले पेड़ को तोड़ रही थी, तभी आवाज सुनकर घर स्वामी हीरालाल जाग गया और टॉर्च जलाकर देखा इतने में टॉर्च की रोशनी से मादा हाथी भड़क कर हीरालाल पर हमला कर दिया। किसी तरह हीरालाल कमरे की ओर भागा और दरवाजा बंद कर लिया, परन्तु तीन साल का बेटा सत्यम, जो बगल के कमरे में सो रहा था आवाज सुन कर उठा और रोने लगा। रोने की आवाज सुनकर शावक हाथी ने उसे सूंड में लपेटकर बाहर निकाला और जमीन पर पटक दिया। मादा हाथी और शावक ने सत्यम को बुरी तरह से कुचल दिया, जिससे मासूम की मौत हो गयी।

दूसरी घटना में इसी रात मोहनपुर गांव में भी हाथियों ने आतंक मचाया। 48 वर्षीय पुरुषोत्तम प्रधान अपने घर में सो रहा था, तभी हाथी ने उसके घर को तोड़ हमला कर दिया, जिससे मौके पर ही उसकी मौत हो गयी। वहीं, 45 वर्षीय संतरा बाई राठिया अपने खेत में थी, जब हाथी ने उसे पटक-पटक कर मार डाला।

हाथियों के इस हमले से गोसाईडीह और मोहनपुर सहित आसपास के गांवों में दहशत का माहौल बना हुआ है। ग्रामीणों का रात को घरों से बाहर निकलना तो क्या अब घर के अंदर सोने से डर रहे हैं। दिन भर के थके-मांदे ग्रामीण रात को चैन से सो नहीं पा रहे हैं। लोग अपने बच्चों और परिवार की सुरक्षा को लेकर बेहद चिंतित हैं।
क्या हाथी और इंसानों के बीच चल रहा द्वन्द थम पायेगा? आखिरकार, हाथी इतने आक्रामक क्यों हो रहे हैं? जंगल से मानव बस्ती की ओर रुख क्यों कर रहे हैं? सवाल तो अनेकों उठ रहे हैं, जो कि यक्ष प्रश्न बनकर रह गये हैं। बात करें वनविभाग की तो उसकी ड्यूटी केवल आंकलन करने और मुआवजा देने तक ही सीमित रह गयी है। ग्रामीणों की सुरक्षा के उपाय करने के बजाय स्थिति का सिर्फ जायजा लेती है और ग्रामीणों से सतर्क रहने की अपील करती है। बात करें तह तक की तो जिस गति से हाथियों की संख्या बढ़ रही है, उससे कहीं अधिक तेजी से जंगल सिमट रहे हैं। वन्य पशुओं के प्राकृतिक आवास में मानव दखल से जहाँ उनकी स्वतंत्रता बाधित हो रही है, वहीं उनकी आक्रामकता बढ़ती जा रही है, जोकि एक गंभीर चिंता का विषय है। यदि, जल्द ही कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया तो आने वाले निकट भविष्य में इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे।