
💥 नाबालिग के फर्जी आधार कार्ड से काम ले रहा था सालासर प्लांट का ठेकेदार।
💥काम के दौरान ट्रेलर की चपेट में आया नाबालिग श्रमिक।
💥बाल श्रमिक की मौत का असली जिम्मेदार कौन?
तहतक न्यूज/रायगढ़।
उद्योग नगरी के नाम से विख्यात रायगढ़ वैसे तो विकास के कई सोपानों को तय करता तीव्र गति से आगे बढ़ रहा है, किन्तु उद्योगों को चलाने वाले कामगारों के अधिकारों और सुरक्षा व्यवस्थाओं में कोई सुधार या विकास नजर नहीं आ रहा। हाल ही में पाली स्थित सालासर प्लांट में 9 अप्रैल को एक श्रमिक की दर्दनाक मौत हुई थी, जिसकी जाँच में वह नाबालिग निकला।
उद्योगों में आये दिन हादसे हो रहे हैं और श्रमिक मौत के मुँह में समा रहे हैं। जहाँ प्रबंधन, उद्योग के कार्यों को ठेके पर दे कर जिम्मेदारियों से मुक्त हो जाते हैं तो वहीं ठेकेदार औद्योगिक नीति-नियमों को ताक में रख कर श्रमिकों से गुलामों की तरह व्यवहार करते हैं। इतना ही नहीं, शासकीय दस्तावेजों जैसे आधारकार्ड में भी छेड़छाड़ करते हुए जन्मतिथि बदल कर नाबालिग को बालिग दिखा कर उसकी मजबूरी का फायदा उठाया जा रहा है।

विगत दिनों सालासर स्टील एंड पॉवर लिमिटेड में 9 अप्रैल को जिस श्रमिक की मौत हुई थी, वह भी नाबालिग ही था। बताया जा रहा है कि आधार कार्ड में जन्मतिथि बदलकर ठेकेदार ने उसे काम पर रखा था। मौत के बाद दस्तावेज देखने पर खुलासा हुआ। अब श्रम विभाग बाल श्रम अधिनियम के तहत कार्रवाई करने जा रहा है।
बता दें कि सालासर प्लांट में 9 अप्रैल की रात बिहार के भभुआ जिले के ग्राम महमूदगंज निवासी शहजाद अली पिता रोशन अली अपने कार्य के दौरान ट्रेलर के चपेट में आकर गंभीर रूप से घायल हो गया था जिसे अस्पताल ले जाते समय उसकी मौत हो गयी थी। डॉक्टरों ने प्राथमिक जांच में ही उसे मृत घोषित कर दिया। शहजाद छह माह से वहां काम कर रहा था। श्रम विभाग की जाँच में पता चला है कि ठेकेदार ने उसका बीमा भी नहीं कराया था। विभागीय जाँच में जो आधार कार्ड मिला है, उसमें शहजाद की जन्मतिथि 8 मार्च 2008 दर्ज है। इस हिसाब से उसकी उम्र 17 साल और एक महीने ही होती है। बताया जा रहा है कि प्लांट में ठेकेदार ने जो आधार कार्ड की फोटोकॉपी प्रस्तुत की है, उसमें जन्मतिथि दूसरी है। जन्मतिथि में छेड़छाड़ कर उसे वयस्क बताकर नौकरी पर रखा गया था।
उद्योगों में हो रहे निरंतर दुर्घटनाओं के कारणों की तह तक जाकर गौर करें तो जो हकीकत सामने आ रही है वह बेहद चिंताजनक है। औद्योगिक नीति-नियमों का खुला उल्लंघन किया जा रहा है। ठेकेदार कमीशन पर लेबर सप्लाई करते हैं और कंपनी बंधुआ मजदूर की तरह उनसे पूरे बारह घंटे काम लेती है। दुर्घटना हो जाने पर प्रबंधन खामोशी से अपनी जिम्मेदारी से हाथ खड़े कर ठेकेदार के ऊपर थोप देता है। परिजनों द्वारा धरना प्रदर्शन व गेट पर चक्काजाम करने पर ही सुलह-समझौता कर मजदूर की जान की कीमत महज चंद लाख रूपये आंक दी जाती है, लेकिन उसके आश्रित परिजनों के आजीवन मुसीबतों की कोई कीमत नहीं। जिनके दम पर कम्पनियाँ लाखों नहीं, करोड़ों नहीं, अरबों कमाती हैं, वहीं श्रमवीरों को देती है मात्र दो वक्त की रोटी।