
तहतक न्यूज/रायगढ़।
सांसद राधेश्याम राठिया के गृहग्राम छर्राटांगर के समीप ब्लैक डायमंड कंपनी का प्रस्तावित बारूद फैक्ट्री के खिलाफ में ग्रामीणों की एकजुटता रंग लायी है। क्षेत्र के लामबंद ग्रामीणों के आगे कंपनी ने घुटने टेक दिये हैं। मिली जानकारी के मुताबिक कंपनी के जीएम का दावा है कि डोकरबुड़ा में बारूद की फैक्ट्री नहीं लगेगी, बल्कि क्षेत्र का विकास ग्रामीणों के सहयोग से ही होगा।

बता दें कि रायगढ़ जिले के घरघोड़ा विकासखंड के अंतर्गत ग्राम छर्राटांगर है जोकि बीजेपी सांसद राधेश्याम राठिया का गृहग्राम भी है चूंकि, सांसद श्री राठिया के गृहग्राम में ब्लैक डायमंड एक्सप्लोसिव्स के स्थापित होने की खबर मात्र से आसपास के दर्जनों गांव के बाशिंदे न केवल विरोध पर उतर आए, बल्कि रायगढ़ जाकर कलेक्टर जनदर्शन में भी इसकी शिकायत करते हुए कंपनी को एक इंच जमीन तक नहीं देने का ऐलान भी कर चुके हैं। ऐसे में विरोध की चिंगारी को सुलगते देख बारूद फैक्ट्री के मैनेजर सकते में आ गये और इससे पहले कि बारूद बनने से पूर्व ही कहीं बड़ा धमाका न हो जाय, उन्होंने मोर्चा सम्हालते हुए यह घोषणा की है कि डोकरबुड़ा में बारूद फैक्ट्री नहीं लगेगी।
ब्लैक डायमंड एक्सप्लोसिव्स के जीएम प्रदीप पटनायक का दावा है कि डोकरबुड़ा में विस्फोटक फैक्ट्री नहीं लगेगी। यही नहीं, जीएम पटनायक ने गांव में जनसंपर्क कर ग्रामीणों में खासकर महिलाओं को यह जानकारी दी कि यह बारूद की फैक्ट्री नहीं है। इस इकाई में नान एक्सप्लोसिव इमव्शन मैट्रिक्स का भंडारण किया जाएगा। प्रदूषण मुक्त पर्यावरण के लिए यह कंपनी इफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (ईटीपी) और सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) स्थापित करेगी। ब्लैक डायमंड के जीएम ने यह भी विश्वास दिलाया कि क्षेत्र के विकास और रोजगार से लेकर विशेष गतिविधियों में कंपनी सहयोग के लिए प्रतिबद्ध है। साथ ही ग्रामीणों के समर्थन और सहयोग से ही कंपनी आगे बढ़ेगी।

इस घटनाक्रम के तह तक जाकर देखें तो यहाँ कई सवाल उठ रहे हैं जैसे क्या बारूद फैक्ट्री से ही खतरा है? नान एक्सप्लोसिव्स इमव्शन मैट्रिक्स से नहीं? प्रदूषण मुक्त पर्यावरण के लिए ई टी पी और एस टी पी अर्थात् अपशिष्ट जल उपचार संयत्र स्थापित होगी, स्पष्ट है कि जल प्रदूषण होगा तभी तो इसे स्थापित करने की बात कर रहे हैं। ई टी पी का उपयोग फार्मास्यूटिकल, कपड़ा, रसायन, रंग जैसे उद्योगों में किया जाता है जहाँ पानी के दूषित होने की संभावना अधिक होती है। ऐसे में स्थानीय ग्रामीणों के लिए यह कहावत “तलवार तरबूज पर गिरे या तरबूज तलवार पर, कटना तो तरबूज को ही है” चरितार्थ होती नजर आ रही है।
फिलहाल क्षेत्रवासियों की जागरूकता और एकजुटता ने इतना तो साबित कर ही दिया है कि वे अब और प्रदूषण का दंश नहीं झेलना चाहते। प्रदूषणकारी उद्योगों को अपना बोरिया बिस्तर लपेटना ही पड़ेगा।