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tahtaknews.com > Blog > आसपास > पशुओं से भी बदतर हो गयी है श्रमिकों की जिंदगी

पशुओं से भी बदतर हो गयी है श्रमिकों की जिंदगी

Pancham Singh Thakur By Pancham Singh Thakur 29 March 2025 4 Min Read
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तहतक न्यूज/छाल,रायगढ़।
श्रमिकों के हित के लिए आज भले ही बड़े-बड़े दावे किये जाते हैं, उनकी सहायता के लिए कई श्रमिक संगठन कार्यरत हैं किन्तु जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है। जिले में स्थापित कुछ कंपनियों को मजदूरों से केवल काम से मतलब रहता है उनके हक और सुख-सुविधाओं का कोई ख्याल नहीं रखता। श्रमिक अपने व परिवार के पेट की खातिर बारह घंटे कड़ी मेहनत कर कंपनियों को करोड़ों का फायदा दिलाते हैं लेकिन बदले में दो जुन की रोटी के सिवा उन्हें कुछ नहीं मिलता और अंततः समय से पहले ही दुनिया से अलविदा हो जाते हैं।
हम बात कर रहे हैं उस अभागे श्रमिक की जो पेटदर्द से तड़पता रहा लेकिन एम्बुलेंस के अभाव में दम तोड़ दिया। बता दें कि एसईसीएल छाल खुली खदान में कार्यरत ओबी ठेका कंपनी राम कृपाल सिंह प्राइवेट लिमिटेड (RKS) के मैनेजमेंट की लापरवाही से पी.सी. हेल्फर करन पासवान, उम्र 22 वर्ष जिला पलामू तहसील जपला की मौत हो गई । अगर कंपनी द्वारा करन के इलाज के लिए वाहन की व्यस्था समय पर करा दिया जाता तो आज उसकी जिंदगी बच गयी रहती।

बताया जा रहा है कि गुरुवार की सुबह लगभग 3 बजे पी. सी. हेल्फर करन पासवान को पेट में असहनीय दर्द उठा जिसके बाद करन के सहकर्मियों द्वारा अपने मैनेजमेन्ट को इसकी जानकारी दी और उपचार के लिए नजदीकी छाल हॉस्पिटल ले जाने के लिए वाहन मांगा, परंतु कंपनी द्वारा कोई भी वाहन उपलब्ध नहीं है कहते हुए हाथ खड़े कर दिये गये। थोड़ी देर बाद कंपनी द्वारा एक बाईक दी गई जो चालू ही नहीं हो पाई अंत में स्थानीय श्रमिकों से बाईक मंगाकर करन के साथी द्वारा उसे छाल उपचार हेतु लाया गया, दोपहर के करीब 4 बजे करन पासवान को पेट में फिर दर्द शुरू हुआ तो दोबारा राम कृपाल सिंह कंपनी के जिम्मेदारों को इसकी सूचना दी गई और अस्पताल जाने के लिए वाहन की मांग की गई तो उस वक्त भी कोई साधन उपलब्ध नहीं कराई गई जिससे उपचार के अभाव में करन पासवान की मृत्यु हो गई।

उल्लेखनीय है कि एसईसीएल में कार्यरत ठेका कंपनी राम कृपाल सिंह तथा सुनील कुमार अग्रवाल दोनों में सैकड़ों कर्मचारी कार्यरत हैं लेकिन प्राथमिक उपचार की कोई व्यवस्था नहीं है और ना ही कोई वाहन की व्यवस्था जबकि उनके अधिकारियों के लिए बाकायदा फोर व्हीलर की सुविधा रहती है, चाहते तो कोई भी अपना वाहन दे सकते थे लेकिन एक मजदूर के लिए किसी का दिल नहीं पसीजा। एक बात और बता दें कि एसईसीएल देश की जानी-मानी बहुत बड़ी कोयला कंपनी है, संसाधनों की कोई कमी नहीं फिर भी यहाँ एक श्रमिक महज एक वाहन के अभाव में अपनी जान गवां देता है इससे बड़ी विडम्बना क्या होगी? एसईसीएल प्रबंधन कहता है कि उसे कोई जानकारी नहीं..? आखिर क्यों नहीं दी गई जानकारी? क्या करन को जानबुझ कर मौत के मुँह में धकेल दिया गया? मजदूर जिसके दम पर पूरा देश खड़ा है क्या यही है उसका पुरस्कार? इक्कीसवीं सदी के भारत में कीड़े- मकोड़ों की जिंदगी जीने को क्यों मजबूर है मजदूर? सवाल तो उठेंगे ही।

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