
तहतक न्यूज/रायगढ़।
जिले में स्थापित उद्योगों के मालिकों ने तो हद ही कर दी है। पैसे के दम पर जिले में भ्रष्टाचार का जो खुले आम नंगा नाच हो रहा है उस पर किसी भी जिम्मेदार को जरा भी शर्म नहीं आ रही है। क्षेत्र के पर्यावरण का बर्बरता पूर्वक बलात्कार तो हो ही रहा है, ग्रामीण मजदूर व किसान बर्बाद हो ही रहे हैं और अब उद्योगों को चलाने वाले श्रमिकों के स्वास्थ्य के साथ भी खिलवाड़ कर लाइलाज गंभीर बिमारियों का तोहफा दे कर जानवरों की तरह मौत के मुँह की ओर धकेला जा रहा है।

ये हम नहीं कह रहे हैं, यह तो सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर हाईकोर्ट के द्वारा कराये गये जाँच कार्यवाही से निकला यह भयानक काला सच सामने आया है। विश्वसनीय सूत्रों से मिली खबर के मुताबिक रायगढ़ जिले में स्थापित कोयला आधारित ताप विद्युत संयंत्रों में श्रमिकों की स्वास्थ्य जांच ही फर्जी तरीके से हो रही है। हाईकोर्ट कमिश्नर ने रायगढ़ जिले का विशेष जिक्र करते हुए कहा कि यहां प्राइवेट कंपनियों ने कई निजी जांच केंद्रों से अनुबंध किया है जो बिना जांच के श्रमिकों को एक जैसी रिपोर्ट थमा देती हैं। हाईकोर्ट में रायगढ़ जिले के उद्योगों के लिए जो कहा गया वह बेहद चिंताजनक है। ऑक्यूपेशनल हेल्थ एंड सेफ्टी एसोसिएशन ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी जिसमें कहा गया था कि देश के कोयला आधारित पावर प्लांटों में काम कर रहे श्रमिकों का स्वास्थ्य बेहद खराब है। इनका नियमित स्वास्थ्य परीक्षण नहीं करने से हालात और भी खराब हो रहे हैं। स्वास्थ्य और सुरक्षा के मापदंडों को पॉवर कंपनियां पूरा नहीं करती।

कर्मचारियों के स्वास्थ्य की निगरानी के लिए न तो सही परीक्षण होता है और न ही उसके आगे उपचार की सहायता मिलती है। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ऑक्यूपेशनल हेल्थ (एनआईओएच) की 2011 की रिपोर्ट ने इस मामले में पॉवर प्लांटों पर सवाल उठाए। उच्चतम न्यायालय के आदेश पर प्रकरण अलग-अलग राज्यों की हाईकोर्ट में पहुंचा।हाईकोर्ट बिलासपुर ने एमीकस क्यूरी और कोर्ट कमिश्नरों से जांच करवाई। इन्होंने उद्योगों में हो रही धांधली को उजागर किया है। रायगढ़ के उद्योगों की जांच के बाद कोर्ट कमिश्नर अदिति सिंघवी ने अदालत को बताया कि यहां ज्यादातर प्राइवेट कंपनियों ने निजी जांच केंद्रों को चिह्नित किया है। श्रमिकों को बिना उचित स्वास्थ्य जांच के यह प्राइवेट सेंटर एक जैसी रिपोर्ट दे रहे हैं। अलग-अलग श्रमिकों की रिपोर्ट बिल्कुल एक जैसी है। कारखानों में एंबुलेंस सेवा ही नहीं है। कुछ उद्योगों में ऑक्यूपेशनल हेल्थ सेंटर तो हैं, लेकिन यह नहीं चल रहे। उन्होंने बताया कि राज्य सरकार को ऐसे उद्योगों में जांच करवानी चाहिए और एंबुलेंस व चिकित्सा उपलब्ध कराने के लिए उचित कदम उठाये जाने चाहिए।
उल्लेखनीय है कि हाईकोर्ट में 68 उद्योगों की जांच कर रिपोर्ट प्रस्तुत की गई है। छग के 68 पावर प्लांटों का नाम है जिसमें रायगढ़ के जिंदल स्टील एंड पॉवर लिमिटेड, मोनेट इस्पात एंड एनर्जी (जे.एस.डब्ल्यू.स्टील)सालासर स्पंज एंड पॉवर लिमिटेड, अडाणी पॉवर, अंजनी स्टील,एमएसपी स्टील एंड पॉवर, नव दुर्गा फ्यूल्स,सिंघल इंटरप्राइजेस, एसकेएस पॉवर, डीबी पॉवर,अथेना छग पॉवर, आरकेएम पॉवरजेन का नाम शामिल है।
यह ऐसा पहली बार हुआ है जब पॉवर प्लांटों में काम कर रहे श्रमिकों के स्वास्थ्य का मामला सही तरीके से अदालत में पहुंचा है। हाईकोर्ट ने सभी रिपोर्ट के आधार पर राज्य सरकार और औद्योगिक स्वास्थ्य एवं सुरक्षा विभाग की जवाबदेही तय की है। अगली सुनवाई में डायरेक्टर हेल्थ एंड सेफ्टी को शपथ पत्र प्रस्तुत करना होगा। रायगढ़ का आईएचएसडी विभाग एक ही अधिकारी की मनमानी से चल रहा है। सालों से रायगढ़ में जमे हुए अधिकारी ने उद्योगों के बीच अपना सेटअप तैयार कर लिया है। राज्य सरकार ने भी यहां पर्याप्त इंस्पेक्टरों की पदस्थापना नहीं की।