तहतक न्यूज/पूँजीपथरा।
प्राचीन काल में राजे-महाराजे अपने साम्राज्य के संप्रभूता और विस्तार के लिए अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया करते थे और अपने राज्य को बढ़ा कर सशक्त व मजबूत बनाते थे।
वर्तमान काल में राजे-रजवाड़े तो नहीं रहे परन्तु विस्तार वाद की परंपरा आज भी कायम है। इस परंपरा को बनाये रखने का बीड़ा राज घरानों के बाद अब उद्योग घरानों ने उठा रखा है। हाँ, पर इसका स्वरुप बदल गया है। उद्योगों के स्थापना या विस्तार के लिए अश्वमेध यज्ञ की जगह जनसुनवाई या लोकसुनवाई जैसे नाम से महायज्ञ किया जा रहा है जिसमें पड़ोसी राजा (प्रभावित आम जन) अधीनता स्वीकार करते हुए हवनकुण्ड रूपी माइक पर “मैं समर्थन करता/करती हूँ ” ऐसा मन्त्र पढ़ कर पर्यावरण की आहुति दे देते हैं और बदले में मिलती है इन्हें एक दिन की रोजी और प्रसाद स्वरुप कंपनी के भंडारे में भोजन।
जनता का यह समर्थन किसी वरदान से कम नहीं होता इसे हासिल करने के लिए कम्पनियाँ हजारों-लाखों नहीं करोड़ों रूपये न्योछावर करती है। इसे पाने के बाद पूरा लोकतंत्र और सारे सिस्टम इनके आगे चिराग के जिन्न की तरह नतमस्तक हो जाते हैं और शुरू हो जाता है जहरीले प्रदूषण का महा तांडव फिर चाहे स्थानीय जनता धूल-गर्दे खाती सड़कों पर उतर कर कितना भी चीखे चिल्लाये कोई नहीं सुनने वाला।
देखिए नजारा :
जब चलती हैं हवाएं
आपको बता दें कि छत्तीसगढ़ का रायगढ़ जिला भयंकर प्रदूषण की मार झेल रहा है। स्थानीय लोगों को खुली हवा में साँस लेने के लिए कोई जगह नहीं बचा है और ऊपर से पर्यावरण विभाग पूँजीपथरा क्षेत्र में प्रीस्मो स्टील्स एंड पॉवर लिमिटेड के विस्तार की पर्यावरणीय जनसुनवाई आगामी 23 दिसंबर को आयोजित करने जा रहा है।
चूँकि पूँजीपथरा क्षेत्र में पहले से ही भारी और प्रदूषणकारी उद्योगों की भरमार है और यह इलाका पूरे देश में सबसे ज्यादा प्रदूषित क्षेत्र के रूप में प्रमाणित किया जा चुका है ऐसे में इनके और विस्तार के लिए अनुमति देना पर्यावरण के साथ खिलवाड़ कर मौत को आमंत्रण देना है। यह प्लांट जहाँ पर है वहाँ पर पर्यावरण प्रदूषण बड़े पैमाने पर है। प्रदूषण रोकने के लिए इस प्लांट द्वारा किसी भी प्रकार का कोई प्रयास नहीं किया गया है। जमीन अधिग्रहण के बाद न तो स्थानीय बेरोजगारों को रोजगार दिया है और न ही सीएसआर मद से किसी भी प्रभावित ग्राम में कोई जनहित का कार्य किया है जबकि इस प्लांट के प्रदूषण से तुमीडीह, छर्रा टांगर, अमलीडीह, सामारुमा, भालूमार, राबो, आमाघाट, सराईपाली, गदगाँव, भुईकुर्री, तराईमाल जैसे दर्जनों गाँव प्रभावित हैं। भारी प्रदूषण, चौपट खेती और बेरोजगारी से हलाकान ग्रामीणों में जबरदस्त आक्रोश और विरोध देखा जा सकता है। बहरहाल अब देखना यह होगा कि झूठी ईआईए रिपोर्ट के आधार पर होने वाली इस जनसुनवाई में आक्रोशित ग्रामीण जनों का विरोध कितना सफल हो पाता है?