तहतक न्यूज/बुधवार 25 सितम्बर 2024/रायगढ़।
भारत की चौवालिस जनगोष्ठियों में से एक छत्तीसगढ़ी समाज ने अपने नौ सूत्रीय मांगों को लेकर राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री के नाम जिला कलेक्टर रायगढ़ को एक ज्ञापन सौंपा है।
रायगढ़ के मिनी स्टेडियम में बड़ी संख्या में उपस्थित हो कर छत्तीसगढ़ समाज के लोगों ने धरना प्रदर्शन कर अपने इस नौ सूत्रीय माँग को आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनैतिक संकट से स्थायी निदान की महा औषधि बताया है। तो चलिए हम बिंदुवार आपको बताते हैं कि वो महा औषधि क्या है?
- कृषि को उद्योग का दर्जा देकर उद्योगपतियों की तरह किसानों को भी अपने उत्पाद पर लागत खर्च जोड़ कर दाम तय करने का अधिकार दिया जाय।
- कृषि आधारित कृषि सहायक तथा अन्य संसाधनों पर छत्तीसगढ़ के लोगों द्वारा ही सहभागिता के आधार पर संचालित करने का अधिकार दिया जाय।
- छत्तीसगढ़ के संसाधनों को कच्चे माल के रूप में बाहर ले जाने से रोकने का कानून बनाया जाय।
- छत्तीसगढ़ की मातृभाषा छत्तीसगढ़ी को इस राज्य की पढ़ाई-लिखाई एवं कामकाज की भाषा बनाई जाय।
- जन प्रतिनिधियों को मिलने वाले वेतन, पेंशन के अलावा अन्य क्षेत्रों में उनके हस्तक्षेप को समाप्त किया जाय।
- शिक्षा और चिकित्सा निजी हाथों से मुक्त कराकर इसे सभी के लिए सभी स्तर तक बिल्कुल मुफ्त किया जाय।
- नशा, अश्लीलता और भोगवाद को बढ़ावा देने वाले सिनेमा, धारावाहिक, गीत, संगीत, नृत्य, विज्ञापन और इंटरनेट आदि पर रोक लगा कर नैतिक मूल्यों पर आधारित चीजों को प्रसारित किया जाय।
- मध्यप्रदेश के बालाघाट जिले को छत्तीसगढ़ राज्य में शामिल किया जाय।
- प्रत्येक व्यक्ति को क्रय क्षमता हासिल करने की संवैधानिक गारंटी मिलने का कानून बनाया ।
जन गोष्ठी छत्तीसगढ़ समाज के अनुसार पूरे भारत वर्ष में अधिवास करने वाली चौवालिस प्रमुख जन गोष्ठियां हैं जैसे — मगध, मिथिला, भोजपुरी, अंगिका, अवध, बुंदेलखंड, कोसल, उत्कल, बृज, हरियाणवी, पंजाबी, डोगरी, हड़ौती, कठियावाड़ी, विदर्भ, सहयाद्री, मलयालम, कन्नड़, तमिल, तुलु, कोंकण, तैलांगना, आंध्र, बंगाल, असमिया, बोरो, मालवा, कश्मीरी, सौराष्ट्र, गुर्जर, पहाड़ी, रायलसीमा, सिरकार, छत्तीसगढ़, बघेली, मेवाड़ी, मारवाड़, किनौरी, सिरमौरी, गढ़वाली, कुमायनी, लेपचा, भूटिया और नागपुरिया।
छत्तीसगढ़ समाज की मानें तो पूर्व में जन गोष्ठियों की आर्थिक और सामाजिक व्यवस्था इतना सुदृढ़ और मानवतावादी था कि इसके रहते पूंजीवादी व्यवस्था को पैर पसारना संभव नहीं था। जन गोष्ठियों की परंपरा में अर्थ व्यवस्था का स्वरुप विकेंद्रित होता है जबकि पूंजीवादी व्यवस्था में अर्थ व्यवस्था का स्वरुप केंद्रित होता है। आज जो विषमता, गरीबी, बेरोजगारी, नैतिक पतन, अपसंस्कृति. आदि सर्वत्र देखने को मिल रहा है, इसका एक ही कारण है जन गोष्ठियों की उपेक्षा और पूंजीवादी व्यवस्था को बढ़ावा दिये जाने की नीति।