
📢 हेडलाईट की तेज रोशनी वरदान या अभिशाप..?
📢चौंकाने वाले प्रेशर हार्न पर नहीं कोई कार्यवाही..?
📢लाख कोशिशों के बावजूद क्यों बढ़ रहे हादसे..?
तहतक न्यूज/रायगढ़। ऑटो मोबाइल्स की दुनिया में नित नये अविष्कार और नये-नये फीचर्स जहाँ लोगों को आकर्षित कर रहे हैं तो वहीं कई जानलेवा मुसीबतों को भी न्योता दे रहे हैं। हम बात कर रहे हैं तेज दूधिया रोशनी वाले वाहनों की जिनके चका-चौंध में सामने वाले की हालत पतली हो जाती है।आजकल वाहनों में तेज रोशनी का प्रचलन बढ़ रहा है। पुराने जमाने में वाहनों के हेडलैंप में साधारण और कम वाट के बल्ब का उपयोग होता था। बदलते समय के साथ हैलोजन बल्ब का अविष्कार हुआ और दुपहिए से लेकर भारी भरकम वाहनों के हेडलाईट में इसका उपयोग होने लगा। वर्तमान समय में नये टेक्नोलॉजी के साथ अब एलईडी लैंप का चलन बढ़ गया है।

चालकों को एलईडी की तेज दूधिया रोशनी से सामने तो स्पष्ट दिखाई देता है किन्तु विपरीत दिशा से आने वाले वाहन चालकों की आँखें चुंधिया जाती हैं और कुछ भी चीज दिखायी नहीं देने से घबराहट में उनका वाहन अनियंत्रित हो कर हादसे का शिकार हो जाता है। अक्सर देखा गया है कि चालक डीपर का प्रयोग कम करते हैं जिससे सामने वाले को लाईट के सिवा कुछ भी दिखाई नहीं देता। सबसे ज्यादा परेशानी बाईक सवारों को होती है क्योंकि फोर व्हीलर के मुकाबले बाईक की रोशनी कम रहती है।
💥भूल गयी है ट्रैफिक पुलिस :–

कुछ बरस पहले तक सभी वाहनों के हेडलाईट में लगभग एक चौथाई हिस्से में ऊपर की ओर काला पेंट लगा दिया जाता था ताकि सामने वाले की आँखों को न चुभे और आसानी से निकल जाय। जिस किसी वाहन के हेडलाईट में यदि काला रंग न पुता हो तो यातायात पुलिस स्वयं पेंटर से पेंट करा कर चालानी कार्यवाही किया करती थी परन्तु अब इस ओर कोई ध्यान नहीं देता जबकि दुर्घटना में तेज रोशनी भी कहीं न कहीं कारण बनती है।
💥ध्वनि प्रदूषण पर भी नहीं हो रही कोई कार्यवाही :–
आजकल ट्रकों और बसों में तेज प्रेशर हॉर्न का उपयोग धड़ल्ले से हो रहा है, हादसे का एक मुख्य कारण यह भी हो सकता है। जब बुलेट में मॉडिफाई साइलेंसर से दुर्घटना हो सकता है तो तेज हॉर्न से भी हो सकता है। ध्वनि प्रदूषण में आयशर ट्रैक्टर के साइलेंसर से निकलने वाला तेज आवाज भी अहम् भूमिका निभा रहा है जिस पर सम्बंधित विभाग चुप्पी साधे है।
💥वास्तव में सड़क दुर्घटनाओं के पीछे कारणों की तहतक जाकर देखें तो ऐसे कई उदाहरण हैं जिन पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है, यदि इन अप्रत्यक्ष लापरवाहियों पर भी अंकुश लगायी जाय तो बढ़ती दुर्घटनाओं में काफी हद तक नियंत्रण पाया जा सकता है।