तहतक/रायगढ़। छत्तीसगढ़ ग्रामीण किसानों के अंतर्मन की व्यथा कथा – छत्तीसगढ़ म भूपेश सरकार हर एक ठी हाना बनाए रिहिस “छत्तीसगढ़ के चार चिन्हारी। नरवा, गरुवा, घुरुवा, बारी ” सुनन त अछा लागे। सोचत रहेन नरवा हर भरे भरे लागहि, गरुवा मन तेल कस चमकत रहीं, घुरुवा म खातू भराये रिहि अउ बारी म साग भाजी बारों महीना टोरे बर मिलहि। नरवा, घुरुवा अउ बारी ल तो नी कहे सकन, लेकिन गरुवा बर गौठान जम्मो पंचायत म बना दिस। एकक ठी गौठान म लाखों रुपिया फूँक दारिन। भिथिया अउ कोटना में आनीबानी के लिख पोत दीन अइसन लागे जानामाना गरुआ बछरु मन घलौ साक्षर हो गीन हें। लेकिन मजाल हे कोनो गरुआ उहाँ हमातिन। खाये बर पैरा, भूँसा अउ हरियर चारा रही त तो। गौचर टिकरा ल कंपनी खोल डारीन हें। बांचे खुँचे डोंगरी म थोर बहुत बन्द बुचरा हो भी जाथे त उहू हर फेक्टरी के करिया करिया फुतका म सनाय रथे। अब तो घर म कोठा घलौ नई हे। पहिली घर घर म गाय गरु बंधाय रहें। जब ले गौठान बनिस तब ले देखे बर नई मिले जम्मो गरुआ सड़क धरी म ठुलाये रथें। ट्रक मोटर म रोज चिपा के मरत हवें।धोबी के कुकुर कस गरुआ मन होगिन, न घर के रहिन न खार के। भूपेश कका के जमाना म गौठान ल बढ़ावा देहे बर बड़े बड़े साहब मन आएं, कलेक्टर घलौ आ जाय, सरपंच सचिव मन एक पांव ठाढ़े रहैं तभो ले गरुआ मन के बनौती हर नी बनीस। रहब ल ए योजना हर बड़ बढ़िया रहिस लेकिन भेवाचार हर ले बोरीस। सोचत रहेन, विशनु भईदा के राज म गाय गरु मन एक के अक्काइस होही लेकिन कोनो पूछारी नई ए।