
तहतक न्यूज/रायगढ़ : छत्तीसगढ़ में सर्वाधिक राजस्व देने वाला जिला रायगढ़, भयंकर प्रदूषण की चपेट में है। ध्वनि प्रदूषण और वायु प्रदूषण के साथ-साथ भीषण गर्मी से भी यहाँ के लोगों में त्राहि मची हुई है। पर्यावरण को बचाये रखने के लिए शासन-प्रशासन के अलावा और भी कई संस्थाएं प्रयासरत हैं लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात।बहरहाल,रायगढ़ को हरियाली से ढकने एक और संगठन पर्यावरण गतिविधि रायगढ़ ने हाथ आगे बढ़ाया है। इस संगठन ने एक प्रेसवार्ता में पर्यावरण संरक्षण और हरित रायगढ़ अभियान की शुरुआत करते हुए लोगों से अपील भी की है। यह संगठन यथा स्थान पौध रोपण कर उन्हें संरक्षित भी करेगी तथा मेडिकल वेस्ट के निपटान और सिंगल यूज प्लास्टिक बॉटल के सदुपयोग करने लोगों को जागरूक करेगी। वैसे देखा जाय तो इस प्रकार पर्यावरण संरक्षण को लेकर कई मुहीम चलाये जा रहे हैं। मानसून आते ही अनेकों संस्थाओं द्वारा जगह-जगह वृक्षारोपण किये जाते हैं किन्तु इसका कोई सार्थक परिणाम नजर नहीं आता। एक तरफ पौधे लगाये जाते हैं जो बरसों बाद वृक्ष बन पाते हैं तो वहीं दूसरी तरफ विकास के आड़ में उद्योग स्थापना के लिए लगे लगाये पेड़ काटे जा रहे हैं। धन के लालच में पूरे जंगल को साफ कर दिया जा रहा है। मानव समाज की एक बड़ी आबादी जो जल, जंगल और जमीन पर आश्रित है, जंगल बचाने आज वो कितना आंदोलनरत है, किसी से छुपा नहीं है। वन्य पशु-पक्षी भटक रहे हैं और मानव बस्ती की ओर रुख कर रहे हैं। आये दिन कोई भालू के हमले से घायल हो रहा है तो कोई हाथी के चपेट में आकर अपनी जान गवां रहा है। इस प्रकार हृदय को झकझोर कर रख देने वाली आ रही भयानक तस्वीरों के सामने वृक्षारोपण का कार्य ऊंट के मुँह में जीरा के समान है। प्रयास तो ये होना चाहिए कि बचे बचाये वन सम्पदा और पर्यावरण को प्रदूषण मुक्त करें। उड़ती जहरीली धूल और फ्लाई ऐश का समुचित निपटान हो। उद्योगों में लगे प्रदूषण रोधी यन्त्र जैसे ईएसपी को रात में चालू रखा जाय। पूँजीपथरा क्षेत्र में ऐसे कई उद्योग हैं जहाँ दिन में कोई डस्ट नहीं दिखता लेकिन जैसे ही अंधेरा होता है पूरा वातावरण जैसे कोहरे से ढका दिखाई देता है। आसपास रहने वाले त्वचा में खुजली और आँखों में जलन से परेशान हैं। आसपास के स्थानीय ग्राम वासियों के स्वास्थ्य परीक्षण कराई जाय तो सारी वस्तुस्थिति स्पष्ट हो जाएगी। वर्तमान स्थिति की बात की जाय तो रायगढ़ जिले में अभी भी कुछ जंगल बचे हैं, पेड़पौधों की उतनी कमी नहीं है, जरुरत है उन्हें वास्तविक संरक्षण की। पर्यावरण संरक्षण को लेकर चल रहे क्रिया-कलापों को देख आम जन मानस के मन में यही सवाल उठ रहा है कि ये कैसा संरक्षण है? कैसा आडम्बर है? जो एक पक्ष हरियाली की चादर बिछाए और एक पक्ष जहरीले राख की काली परत चढ़ाये।