रायगढ़। धनसंचय के मायाजाल में आज हर इंसान उलझा हुआ है। अमीर हो या गरीब हर कोई धन कमाने की होड़ में अपने स्वास्थ्य को दाँव पर तो लगा ही दिया है, अपने परिवार और बच्चों की भी उसे परवाह नहीं है जबकि वो यही कहता फिरता है कि मैं अपने बीबी बच्चों के लिए कमा रहा हूँ। पूरे छत्तीसगढ़ में रायगढ़ जिला प्रदूषण के मामले में अव्वल नंबर पर है। विकास के नाम पर जहर उगलने वाले भारी भरकम उद्योगों की स्थापना और विस्तार कर पेड़ पौधों की अंधाधुंध कटाई हो रही है। वन्यप्राणी विलुप्ति के कगार पर आ गये हैं। नदी, तालाब और जल स्रोत समय से पहले ही सूख रहे हैं। रायगढ़ से घरघोड़ा जाने वाले मुख्य मार्ग में पूँजीपथरा क्षेत्र जो कभी अपने खूबसूरत प्राकृतिक नजारों और गगन चूमते ऊँचे-ऊँचे विशाल हरेभरे वृक्षों से लदे शुद्ध प्राकृतिक आबो हवा के लिए जाने जाते थे, अठारह नाला हनुमान मंदिर के समीप पहाड़ी को रायगढ़ का कंचनजंगा कहा जाता था,आज यहाँ साँस लेना मुश्किल हो गया है। दैत्याकार वाहनों की रेलमपेल और खतरनाक रासायनिक धुंवों के उड़ते गुबार से स्थानीय निवासियों का जीना मुश्किल हो गया है। लोग गंभीर बीमारियों के शिकार हो रहे हैं। नशे की लत बढ़ती जा रही है और लोगों की कार्य क्षमता में गिरावट आ रही है और लोग कीड़े मकोड़ों की तरह मर रहे हैं। इस क्षेत्र में सड़क दुर्घटनाओं में मौत, चोरी, मारपीट, अवैध कारोबार, भ्रष्टाचार जैसी घटनाओं में वृद्धि एक गंभीर चिंता का विषय और यक्ष प्रश्न बन कर रह गया है। सच्चाई की तहतक जाने की बात करें तो वास्तविकता यह है कि विकास का लाभ केवल बाहर से आये धन कुबेरों और अवैध कारोबारियों को मिल रहा है न कि स्थानीय जनता को। यहाँ की आम जनता खासकर ग्रामीण जनता कमर तोड़ मेहनत कर रही है तो बमुश्किल दो ढाई सौ रूपये पा रही है जिसे गांजा व शराब में खर्च कर थकावट दूर करने नशे में झूमने को मजबूर है बाकि पेट के लिए मुफ्त का चावल तो है ही। बच गये किसान जो घर के रहे न घाट के । नेताओं, अधिकारियों और धनकुबेरों की बात करें तो प्रदूषण का प्रभाव