
💥स्थानीय कर्मचारियों से सौतेला व्यवहार, हो रहे शोषण के शिकार।
💥 तीन साल में पदोन्नत का नियम, मगर दस सालों से नहीं कोई पदोन्नति।
💥लोकल कर्मियों का वेतन 22 हजार, तो बाहरी लोगों को 60 हजार..!
💥 कंपनी का तुगलकी फरमान, एक दिन नहीं आने पर आठ दिन की सैलरी काटने की धमकी..?
तहतक न्यूज/रायगढ़, छत्तीसगढ़।
हम एक ऐसे देश में रहते हैं जहाँ अनोखे, अजूबे और विचित्रताओं से भरे तिलिस्म की तस्वीरें देखने को अक्सर मिलती रहती है। यहाँ जो दिखाया जाता है वो है नहीं और जो होता नहीं उसे दिखाया जाता है। भले ही भारत को लोकतान्त्रिक देश कहते हैं, परन्तु 77 साल गुजर जाने के बाद भी राजतन्त्र और पूंजीवाद का बोलबाला है। यहाँ शोषण के शिकार ज्यादातर मजदूर और किसान हैं, गुलामी का जीवन आजादी से पहले भी जिया करते थे और आजादी के बाद भी जी रहे हैं, हाँ! तरीका जरूर बदल गया है। “जिसकी लाठी उसकी भैंस” वाली कहावत अभी भी चरितार्थ हो रही है। ये दुनिया दौलत वालों की है, मेहनत वालों की नहीं। जिसके पास पैसा है उसके आगे सभी नतमस्तक हैं।

“अडाणी ग्रुप” को कौन नहीं जानता? दुनिया के टॉप रईसों में गिने जाते हैं। कॉर्पोरेट जगत में इनकी बड़ी धाक है, इनके जन कल्याण से संबंधित अनेकों सामाजिक गतिविधियों की खबरें, प्रमुख टीवी चैनलों व समाचार पत्रों के अलावा स्थानीय न्यूज पोर्टलों में आये दिन देखने सुनने को मिलती रहती हैं। भारत के टॉप-5 दानवीरों में ये पाँचवें नंबर पर हैं, लेकिन छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में स्थापित इनकी कंपनी “अडाणी पॉवर लिमिटेड” ने अपने अड़ियल रवैये और स्थानीय जमीन दाताओं से वादाखिलाफी कर “अडाणी” की प्रतिष्ठा को मटियामेट करने पर तुली हुई है।

आपको बता दें कि यहाँ कंपनी में कार्यरत स्थानीय ग्रामीण अपनी जायज मांगों को लेकर मुख्य गेट के सामने पिछले छः दिनों से धरने पर बैठे हैं, किन्तु संवाद के लिए न तो कंपनी प्रबंधन सामने आया और न ही प्रशासन का कोई अधिकारी आया। चिलचिलाती धूप और भरी गर्मी में टेंट के नीचे धरने पर बैठे लोगों की मानें तो कंपनी के अधिकारीगण प्लांट में कार्यरत स्थानीय ग्रामीणों से सौतेला व्यवहार कर रहे हैं।अपनी पुरखों की जमीन देने वाले किसानों को कंपनी में नौकरी पर तो रख लिया है, लेकिन दस साल बाद भी उन्हें न तो पदोन्नति दी जा रही है और न ही वेतन बढ़ाया जा रहा है, जबकि इस कंपनी में हर तीन साल में पदोन्नति का नियम है। विडंबना देखिये कि बाहर से जो आ रहे हैं उनको यही स्थानीय कर्मी काम सीखा रहे हैं, उनका प्रमोशन कर 55 से 60 हजार रु. वेतन दिया जा रहा है लेकिन इनकी सैलरी 20-22 हजार रु. से आगे नहीं बढ़ पा रही है।

बताया तो यह भी जा रहा है कि स्थानीय कर्मचारी किन्हीं कारण वश यदि एक दिन ड्यूटी नहीं आता है तो आठ दिन की सैलरी काटने की धमकी दी जाती है। सभी इंचार्ज को बोला गया है कि कर्मचारियों को फोन करो और कहो ड्यूटी आओ नहीं तो रस्टिकेट कर दिया जायेगा।

इस प्रकार स्थानीय कर्मचारियों को कंपनी प्रबंधन द्वारा किसी न किसी बहाने से प्रताड़ित किये जाने की बात सामने आ रही है। वहीं धरना प्रदर्शन के छः दिन गुजर जाने के बाद भी संवाद के लिए प्रबंधन कोई पहल नहीं कर रहा। कंपनी की स्थापना के समय में भू-अधिग्रहण के लिए कंपनी और भूमि स्वामियों के बीच स्थानीय प्रशासन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, लेकिन ऐसे समय में प्रशासन का तटस्थ रहना भी कई सवालों को जन्म दे रहा है।

वास्तव में देखा जाय तो जमीन खरीदी और जनसुनवाई होने तक कम्पनियाँ स्थानीय लोगों को पलकों में बिठाये रखते हैं। काम निकल जाने के बाद किये गये वादे तो दूर, स्थानीय लोगों को पहचानते तक नहीं। शासन-प्रशासन भी केवल आश्वासन के झुनझुने बजाते नजर आते हैं। जन प्रतिनिधियों की तो बात ही निराली है, चुनाव के समय ही बरसाती मेंढक की तरह टर्राते हैं बाकि समय जमीनों में गड़ जाते हैं।

बहरहाल, शांतिपूर्वक धरना प्रदर्शन जारी है, यदि समय रहते सुनवाई नहीं हुई तो आगे उग्र आंदोलन की तस्वीरें देखने को मिल सकती हैं।
