
तहतक न्यूज/घरघोड़ा।
विद्युत विभाग द्वारा टेंडा नवापारा के बगचबा क्षेत्र में अघोषित रूप से बिजली कटौती किया जा रहा है जिससे आम ग्रामीण जनों को कई मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है। क्षेत्र में बार-बार हो रही कटौती से आक्रोशित ग्रामीणों ने मुख्य सडक पर बैठ कर चक्का जाम कर दिया। और जमकर नारेबाजी की।
यहाँ बताना आवश्यक है कि इस क्षेत्र में जंगली हाथियों का आना-जाना लगा रहता है, अभी कुछ दिन पहले ही पानीखेत के जंगल में हाथियों के विचरण के दौरान दलदल में फंस कर एक हाथी शावक की मौत हो गयी थी। इसी तरह कई बार बिजली के चपेट में आने से हाथियों की मौतें हुई हैं जिसकी वजह से विद्युत विभाग अघोषित रूप से बिजली की सप्लाई में कटौती कर रहा है।
रहवासी क्षेत्र में हाथियों के विचरण से जहाँ ग्रामीणों के जान माल का खतरा बना हुआ है वहीं बिजली कटौती से यहाँ रात का अंधेरा और भयानक हो जाता है। दिन तो जैसे-तैसे काट लेते हैं मगर रात में लोगों के लिए खतरा और बढ़ जाता है। रात भर दहशत के साये में जागना पड़ रहा है। एक-दो रात हो तो बात अलग है किन्तु रोज-रोज की मुसीबत से ग्रामीणों में आक्रोश ब्याप्त हो गया है। आज ग्रामीणों का गुस्सा फूट पड़ा और सुबह से सडक पर उतर कर घरघोड़ा और नवापारा के बीच सड़क में चक्का जाम कर प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी कर आक्रोश प्रकट किया।
उपरोक्त घटना क्रम के तह तक की बात करें तो हाथी मानव द्वन्द एक यक्ष प्रश्न बन कर रह गया है। बचाना दोनों को है लेकिन दोनों मारे जा रहे हैं, इस गंभीर समस्या का ठोस निदान न तो शासन-प्रशासन कर पा रहा है और ना ही कानून। देखने में वन्य प्राणियों की सुरक्षा के लिए कठोर कानून बने हैं किन्तु उनका स्वतंत्र जंगली जीवन बाधित हो रहा है, उनका प्राकृतिक आवास उजड़ रहा है, इस पर ऊँचे ओहदों में बैठे सक्षम लोगों का ध्यान आकृष्ट क्यों नहीं हो रहा? आज वो मानव बस्ती की ओर रुख क्यों कर रहे हैं? विकास के नाम पर इंसानों के लिए अरबों-खरबों के प्रोजेक्ट लगाये जा रहे हैं, प्रकृति का भरपूर दोहन हो रहा है लेकिन पर्यावरण संतुलन में अहम भूमिका निभाने वाले वन और वन्य प्राणियों के लिए कोई कारगर व्यवस्था क्यों नहीं है?केवल लंबे-चौड़े पोस्टरों में “वन ही जीवन है” “जल है तो कल है” जैसे खूबसूरत स्लोगन से कर्त्तव्यों की इतिश्री हो रही है।
मानव समाज के लिए यह एक कैसी विडम्बना है जिसमें मानसून शुरू होते ही दिखावे के लिए जहाँ वन विभाग और छपास रोगी संस्थाएं वृक्षारोपण के नाम पर एक पौधे को दस लोग छू कर फोटो सेशन कर लोगों को “एक पेड़ माँ के नाम” का खूबसूरत नारा दे कर पौधा लगाने का शानदार उपदेश दे जाते हैं तो वहीं दूसरी ओर ऐसी भी तस्वीरें देखने को मिल रही हैं जिसमें आम जनता जंगल बचाने को “हसदेव बचाओ” के मर्मस्पर्शी नारे लगाते हुए आंदोलनरत है। इस प्रकार यहाँ तो पूरा सिस्टम ही सवालों के घेरे में नजर आ रहा है।