
तहतक न्यूज/रायगढ़, छत्तीसगढ़।
जिला मुख्यालय परिसर में सवालों भरी नकारात्मक तस्वीरों की बाढ़ सी आने लगी है। जन-दर्शन में सामूहिक रूप से आने वाले फरियादियों की टोली की संख्या लगातार बढ़ रही है। इसी क्रम में पुसौर ब्लॉक के ग्राम कोतमरा के शताधिक ग्रामीणों ने कलेक्टर कार्यालय पहुँच कर अडानी के खिलाफ जमकर भड़ास निकाली और 11 सूत्रीय मांगों को लेकर कलेक्टर जनदर्शन में आवेदन सौंपते हुए एक पखवाड़े के अंदर समस्या का निदान नहीं होने पर आंदोलन करने की बात कही।

बता दें कि पुसौर विकासखंड के ग्राम कोतमरा सरपंच अमीन पटेल के नेतृत्व में कलेक्ट्रेट में हल्लाबोल करने वाले ग्रामीणों ने कलेक्टर मयंक चतुर्वेदी की अनुपस्थिति में डिप्टी कलेक्टर अपूर्व टोप्पो को 11 सूत्रीय मांगों को लेकर ज्ञापन सौंपते हुए यह घोषणा भी की है कि अगर 15 दिन के अंदर उनकी समस्याओं का निराकरण नहीं हुआ तो सोलहवें दिन से वे धरना आंदोलन शुरू करेंगे और यह सिलसिला शुरू करते हुए जलसमाधि, इच्छामृत्यु जैसे बेहद संवेदनशील प्रदर्शन तक वे जा सकते हैं।

उल्लेखनीय है कि इस भू-अर्जन में ग्राम कोतमरा का 116.344 हेक्टेयर खेती भूमि भी शामिल है। इस भूमि को ग्राम कोतमरा के भूमि धारक कृषक किसी भी उद्योग या कम्पनी को देना नहीं चाहते हैं। ग्रामीणों की मांग है कि अधिकांश जमीन पूर्वजों से प्राप्त पैतृक जमीन व कृषि ही जीवन यापन का मुख्य आधार है। भू-अर्जन से कृषक भूमिहीन व बेरोजगार हो जायंगे और उनका अपने परिवार के पालन पोषण के लिए आय का जरिया समाप्त हो जायेगा। प्रस्तावित भूमि सिंचित एवं दो फसली है जो आय का मुख्य साधन है। गांव का कोई भी किसान अपना जमीन कम्पनी को देना नहीं चाहता, इसलिये इस संबंध में ग्राम सभा आयोजित कर जमीन नहीं देने के लिये 2 बार ग्रामसभा में प्रस्ताव भी पारित कर लिया गया है।
प्रस्तावित भूमि में गाँव का 2 शासकीय तालाबों में डोंगिया और बेहरा डभरी तालाब को गाँव के 4 व्यक्तियों का मत्स्य पालन के लिये लीज पर दिया गया है। इसमें 4 व्यक्तियों के परिवार का भरण-पोषण हो रहा है और गर्मी के दिनों में यहाँ आम निस्तारी होता है। डोंगिया तालाब के पास श्मशान घाट भी है। प्रस्तावित भूमि शासकीय पूर्व माध्यमिक शाला से लगा है। प्रस्तावित भूमि ग्राम पंचायत कोतमरा के पंचायत भवन से लगा है तथा सार्वजनिक वितरण प्रणाली राशन दुकान भी लगा हुआ है। यही नहीं, प्रस्तावित भूमि में गाँव के जगन्नाथ मन्दिर का भोग जमीन भी शामिल है। प्रस्तावित भूमि गाँव के अधिकांश घरों से लगा हुआ है, जिससे कुछ परिवार आवासहीन हो जायेंगे।
बारिश के दिनों में जतरी बहरा के पानी का निकास इन्हीं खेतों से होता है। इन जमीन के बीच में ही सेवा सहकारी समिति मर्यादित बड़े भण्डार का मुख्य मार्ग है, जिसमें कोतमरा के साथ कई गाँव के लोग अपना धान बेचने के लिये जाते हैं। ग्राम कोतमरा का 50 एकड़ का सबसे बड़ा टार तालाब का पानी इन्हीं जमीनों को सिंचित करता है। ग्राम कोटवार का कोटवारी जमीन भी इसमें शामिल है। प्रस्तावित कृषि भूमि में ही गाँव के खेतीहर मजदूरों के परिवारों का पालन-पोषण होता है। इस प्रकार प्रस्तावित कृषि भूमि के भू-अर्जन से कई कृषक न केवल भूमिहीन हो जायेंगे, अपितु आय का जरिया समाप्त हो जाने से बेरोजगार भी हो जायेंगे। उनके आय का जरिया समाप्त हो जाने उनके परिवार का भरण-पोषण मुश्किल जायेगा।
बहरहाल, ग्रामीण अपने अंधकारमय भविष्य को लेकर काफी चिंतित और आक्रोशित हैं। सवाल उठता है कि आम जनता उद्योगों की स्थापना के खिलाफ आखिर क्यों जा रही है? जनता विकास क्यों नहीं चाहती? हकीकत की तहकीकात में तह तक जाकर देखा जाय तो उद्योगों के आसपास रहने वाले स्थानीय ग्रामीण प्रदूषण, शोषण, नशाखोरी और दुर्घटनाओं का शिकार हो रहे हैं। कथित विकास के नाम पर उन्हें केवल विनाश का कहर झेलना पड़ रहा है। यही वजह है कि अब लोग अपनी जमीन किसी भी हालत में देना नहीं चाहते। आगामी 14 अक्टूबर को प्रस्तावित जिंदल की जनसुनवाई के स्थगित होने से ग्रामीणों को शासन-प्रशासन से न्याय की उम्मीदें बढ़ी हैं।