
💥रोजी-रोटी की तलाश में एक दिन पहले ही आया था युवक।
💥कटे हुए विद्युत तार के संपर्क में आने से लगा करेंट का तगड़ा झटका।
💥बारिश के दिनों में भी कोई मेंटेनेन्स नहीं, कंपनी के पास पीवीसी टेप तक नहीं।
💥सतत निगरानी के अभाव में कंपनी हो रहे लापरवाह, औद्योगिक नीति-नियमों का हो रहा खुला उल्लंघन।
तहतक न्यूज/गेरवानी-रायगढ़,छत्तीसगढ़।
जिले में स्थापित उद्योगों में दुर्घटनाओं का कहर थमने का नाम नहीं ले रहा है। लापरवाह उद्योगों में एक के बाद एक लगातार ऐसी घटनाएं हो रहीं हैं, जिनमें श्रमिकों की जानें चली जा रही हैं और उनके परिवार अनाथ होकर तबाही की जिंदगी जीने को मजबूर हो रहे हैं। ऐसे ही एक मामले में अंजनी स्टील कंपनी में कार्य के दौरान करेंट की चपेट में आने से एक ठेका मजदूर की दर्दनाक मौत हो गयी।
यह घटना पूँजीपथरा थाना क्षेत्र की है। बताया जा रहा है कि झारखण्ड के साहेबगंज जिला के ग्राम नयानगर निवासी मो. हैदर अंसारी पिता इदरीस अंसारी (40वर्ष) अपने कुछ साथियों के साथ बीते गुरुवार को काम की तलाश में झारखण्ड से रायगढ़ आया था। गेरवानी से लगे ग्राम उज्जलपुर स्थित अंजनी स्टील प्लांट में ठेकेदारी में काम शुरू किया था। दूसरे दिन शुक्रवार को हैदर अंसारी कोल क्रशर साईट के क्रेन बुश बार में हेल्पर का कार्य कर रहा था। काम के दौरान शाम पाँच बजे आसपास लगे विद्युत तार जोकि कटे हुए थे, उनके सम्पर्क में आ गया और करेंट लगने से वह नीचे गिर पड़ा। हैदर के एकाएक नीचे गिरते ही वहाँ कार्यरत अन्य श्रमिकों में हड़कंप मच गया। आनन-फानन में प्रबंधन को सूचना दी गयी और हैदर को उपचार के लिए जिला चिकित्सालय रायगढ़ लाया गया, जहाँ चिकित्सकों ने प्रारंभिक जाँच में ही मृत घोषित कर दिया। मृतक के परिजन सूचना मिलते ही आज सुबह रायगढ़ पहुँचे। उनकी उपस्थिति में पुलिस द्वारा पोस्टमार्टम कराकर शव को अंतिमसंस्कार के लिए परिजनों को सौंपते हुए मामले की जाँच शुरू कर दी गयी है।
उल्लेखनीय है कि उद्योगों में सुरक्षा के प्रति इस तरह की लापरवाही से घटनाएं लगातार हो रहीं हैं, लेकिन उद्योग प्रबंधन बाज नहीं आ रहे हैं, वहीं इन पर कार्रवाई करने वाले जिम्मेदार विभाग की भी नाकामी सामने आ रही है। लापरवाही से हो रहे हादसों के पीछे तह तक जा कर देखा जाय तो ठेका श्रमिकों की कोई अहमियत नहीं है। जानवरों की तरह इनसे काम लिया जा रहा है, जबकि इनके हित एवं सुरक्षा के लिए देश में ऐसे-ऐसे कानून बनाये गये हैं, जिन्हें जानकर ऐसा लगता है जैसे पूरे देश में एक मात्र श्रमिक वर्ग है, जो सबसे ज्यादा सुरक्षित और खुशहाल है, लेकिन ये सब केवल किताबों में ही शोभायमान हैं। जमीनी स्तर पर देखा जाय तो वास्तव में मजदूरों के लिए यह कानून मृग-मरीचिका के सिवा कुछ भी नहीं। जिले में छोटे-बड़े कई दर्जन उद्योग संचालित हैं, जहाँ हजारों श्रमिक कार्यरत हैं, परन्तु कई उद्योगों में उनकी सुरक्षा के लिए कोई ध्यान नहीं दिया जाता। जब कोई दर्दनाक हादसा हो जाता है तो जिम्मेदारों द्वारा केवल खानापूर्ति कर परिजनों को चंद रूपये देकर अपने कर्त्तव्यों से इतिश्री कर ली जाती है। दूर प्रांतों से आये श्रमिक के शोक-संतप्त परिजन इसे अपना नियति मान खामोशी से वापस लौट जाते हैं। यही वजह है कि उद्योग वाले स्थानीय लोगों को रखने के बजाय बाहर से आये मजदूरों को न केवल प्राथमिकता देते हैं, बल्कि अपने लगभग सारे कार्य ठेके पर चलाते हैं जिससे वे कानूनी दाँव-पेंच से बच सकें। बेरोजगारी और महँगाई की मार झेल रहे गरीब इंसान की मजबूरी का फायदा उद्योगपति उठा रहे हैं।