
तहतक न्यूज/तमनार-रायगढ़, छत्तीसगढ़।
जिले में विकास की रफ्तार जिस गति से बढ़ रही है उससे कहीं तेज गति से समस्याओं का अम्बार भी लगता जा रहा है। आये दिन कहीं न कहीं धरना प्रदर्शन, रैली, आंदोलन, हड़ताल आदि की तस्वीरें देखने को मिल रही हैं। इसी तारतम्य में आज औद्योगिक क्षेत्र तमनार में अपनी समस्याओं और विभिन्न मांगों को लेकर स्थानीय ग्रामीणों ने अनिश्चित कालीन आर्थिक नाकाबन्दी कर दी है जिससे ट्रकों और ट्रेलरों के पहिये थम गये हैं।


बता दें कि सीएचपी चौक लिबरा में आमगांव और तमनार क्षेत्र से भारी संख्या में पहुँचे ग्रामीण महिलाओं और पुरुषों ने विभिन्न मांगों को लेकर आज सुबह दस बजे से ट्रकों और ट्रेलरों को रोक कर अनिश्चित कालीन आर्थिक नाकेबंदी कर दी। अपनी समस्याओं और मांगों के सम्बन्ध में आंदोलनकारियों ने बताया कि दुर्घटना में मृतकों के आश्रितों को मुआवजा, नौकरी और उनके बच्चों को ओपी जिंदल स्कूल में मुफ्त शिक्षा, स्थानीय ग्रामीणों को मुफ्त चिकित्सा, लिबरा से उड़ीसा सीमा तक फोरलेन सड़क, जंगलों की कटाई पर रोक, एनजीटी के आदेशानुसार गाँव से 500 मी. की दूरी पर माइंस एवं 125 मी. की दूरी पर ग्रीन बेल्ट लगाने, कोयला खनन हेतु बढ़ाई गयी लीज की अवधि निरस्त कर पुनः ग्राम सभा की सहमति लेते हुए प्रभावितों को मुआवजे का लाभ, बेरोजगारी भत्ता या रोजगार देने, पर्यावरण प्रदूषण को रोकते हुए प्रदूषणकारी कंपनियों पर कार्रवाई, प्रधानमंत्री आवास योजना में लगे रोक के आदेश को रद्द करने, ब्लास्टिंग से होने वाले नुकसान के क्षतिपूर्ति देने, ओवरलोड ट्रकों और उसके फिटनेस की जाँच तथा 20 वर्षों से जमीन क्रय-विक्रय पर लगे प्रतिबन्ध हटाने जैसे उनकी प्रमुख मांगें हैं। जबतक उनकी मांगें पूरी नहीं होती हैं तब तक यह आर्थिक नाकेबंदी जारी रहेगी।

उल्लेखनीय है कि आम जनता के समस्याओं से रूबरू होने और उनके समाधान के लिए छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा 08 अप्रैल से 31 मई तक पूरे प्रदेश में “सुशासन तिहार- 2025” कार्यक्रम चलाया गया था जिसमें, लोगों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था और अपनी-अपनी समस्याओं व शिकायतों को लेकर समाधान शिविर के पेटियों में आवेदन जमा किया था। संबंधित विभागों द्वारा समय पर निराकरण के दावे की बातें भी सामने आयीं थीं किन्तु, आम जनता की समस्याएं कम होने के बजाय सूरसा के मुख की तरह बढ़ती ही जा रही हैं। सवाल उठता है कि, समाधान शिविरों के बाद भी जनता को सड़कों पर उतरना पड़ रहा है आखिर, क्यों? “सुशासन तिहार” जैसे महत्वपूर्ण कार्यक्रम का लक्ष्य संवाद से समाधान तक पहुँचने में कहीं असफल तो नहीं हो गया?