💥 अवैध गैस भंडारण की शिकायत लेकर थाने पहुंचे पत्रकार से मारपीट
💥 वरिष्ठ पत्रकार पर एक कांस्टेबल ने उठाये हाथ, वर्दी को कलंकित करते पुलिस कर्मी की गुंडागर्दी चरम पर
💥पुलिस और पब्लिक के बीच सामंजस्य के बजाय बढ़ रही नफरत की खाई
💥हाथ उठाये जनता तो कहलाता है अपराध, पुलिस मारे डंडे तो..?
तहतक न्यूज/कांकेर।
प्रदेश में पत्रकारों के साथ अत्याचार की घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रहीं हैं। एक तरफ शासन, कानून और नेता पत्रकारों के हित में बड़ी-बड़ी बातें करते हैं तो दूसरी तरफ पत्रकारों के साथ गाली-गलौच, मारपीट, धमकियाँ और झूठे मामलों में फँसाने की घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं।
देशभक्ति और जनसेवा के गीत गाने वाली पुलिस जिसे हिन्दी में जनरक्षक कहते हैं, ठीक इसके विपरीत आचरण करे, एक साधारण कांस्टेबल बुद्धिजीवी वरिष्ठ पत्रकार से वर्दी का रौब जमाते और अशोभनीय व्यवहार करते हुए मारपीट करे तो उसे क्या समझा जाय?
आपको बता दें कि छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग के कांकेर जिले में वरिष्ठ पत्रकार कमल शुक्ला के साथ थाने में मारपीट का मामला सामने आया है। लंबे समय से भ्रष्टाचार और प्रशासनिक अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाने वाले कमल शुक्ला अवैध गैस भंडारण की शिकायत लेकर थाने पहुंचे थे। उनके मोहल्ले में अवैध गैस सिलेंडरों का भंडारण किया जा रहा था, जो आज सुबह आग लगने की घटना में शामिल था। कमल शुक्ला ने यह मामला पुलिस के संज्ञान में लाने का प्रयास किया, परंतु थाने में उनकी सुनवाई की बजाय, वहां मौजूद कांस्टेबल विजय सलाम ने उनके साथ मारपीट की।
इस घटना से न केवल क्षेत्र में सनसनी फैल गई है, बल्कि पत्रकारों की सुरक्षा और प्रदेश में कानून-व्यवस्था पर भी सवाल उठने लगे हैं। स्थानीय नागरिकों का कहना है कि कमल शुक्ला हमेशा से ही अवैध गतिविधियों के विरुद्ध आवाज उठाते रहे हैं, और इस प्रकार की घटनाएं उन पर दबाव बनाने का प्रयास प्रतीत होती हैं। इस दौरान थाना प्रभारी से संपर्क साधने की कोशिशें जारी हैं, लेकिन समाचार लिखे जाने तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं मिल पाई है।
आम जनता के समक्ष बारम्बार सामने आ रही ऐसी बदसूरत तस्वीरों के पीछे तह तक की बात करें तो इस घटना ने छत्तीसगढ़ में बिगड़ती कानून-व्यवस्था और प्रशासनिक ढुलमुल रवैये पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। पिछले कांग्रेस शासन के दौरान गुंडागर्दी का सिलसिला प्रदेश में जारी था, और अब भाजपा शासन में भी बदस्तूर जारी है। गृहमंत्री पर कानून-व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी भारी पड़ती नजर आ रही है। जनता में दहशत, आक्रोश और असंतोष बढ़ता जा रहा है, तथा पत्रकारों के दमन की ये घटनाएं एक गंभीर समस्या बनती जा रही हैं। बीते 02 अक्टूबर को आयोजित “पत्रकारिता संकल्प महासभा” की शक्ति और अभूतपूर्व सफलता से जहाँ शासन के सिंहासन डोल गये थे तब लगा था कि अब पत्रकारों के ऊपर हो रहे अत्याचारों पर अंकुश लगेगा, किन्तु अवहेलना और दुर्व्यवहार की फिर वही पुनरावृत्ति शासन-प्रशासन की मंशा को कहीं न कहीं संदेह के कटघरे में खड़ी करती नजर आ रही है। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि चिंगारी को हवा देकर किसी बड़े आंदोलन को आमंत्रित करने का प्रयास किया जा रहा है।