विशेष संवाददाता – सुनील कुमार यादव तहतक न्यूज/गरियाबंद। वर्तमान समय में शिक्षा का महत्व क्या है बताने की आवश्यकता नहीं है। अमीर हो या गरीब, शिक्षा हम सबके लिए जरुरी है और हमारे देश के संविधान ने हम सभी को शिक्षा का अधिकार दिया है। इसके लिए सरकार हर साल करोड़ों रूपये खर्च करती है। शायद ही ऐसा कोई गाँव हो जहाँ शिक्षा का मंदिर न हो। सरकार के अलावा ऐसे कई सामाजिक संस्थाएं, संगठन व व्यक्ति विशेष भी हैं जो किसी न किसी रूप में सहयोग करते रहते हैं, लेकिन इसे एक विडम्बना ही कहेंगे कि गरियाबंद का हाई स्कूल शासन की अनदेखी का शिकार हो चला है। चारों ओर बस्ती से घिरे इस हाई स्कूल के खेल मैदान का अस्तित्व धीरे-धीरे मिटने के कगार पर है।
💥खिलाड़ियों से गुलजार रहता है ये मैदान:-
यहाँ न जाने कितने राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर के खेल प्रतियोगिताएं होती रही हैं, गरियाबंद जिला मुख्यालय का यह एक ऐसा हाई स्कूल खेल मैदान है जहाँ आज भी बच्चों व छात्र-छात्राओं के साथ स्थानीय लोग भी बॉलीबॉल, क्रिकेट, दौड़, हॉकी या अन्य खेल खेलने यहां आते हैं। इस मैदान में शीतकालीन मौसम में 4 महीने कई खेल की ट्रेनिंग भी करते हैं।
💥बन रहा असामाजिक तत्वों का अड्डा :-
स्कूल मैदान का गेट जो कि बरसों से टूटा हुआ है जिसे आज तक नहीं लगाया गया, मैदान के चारों ओर बाउंड्री (दीवार) के टूट जाने के चलते यह खेल का मैदान शराबियों और गंजेडियों का अड्डा बन गया है, जो मैदान खेल के नाम से सुरक्षित और आरक्षित होनी चाहिए उस मैदान में शाम ढलते ही शराबियों के महफिल जमने लगते हैं। नशे की झोंक में फोड़ दिए गए शराब की बोतलों के कांच के टुकड़े जगह–जगह पर बिखरे नजर आ जायेंगे, सामने ही क्रीड़ा परिसर है जहाँ छात्र इस मैदान में आकर सुबह शाम दौड़ लगाते हैं,जरा सोचिए की इस बीच कोई कांच का टुकड़ा यदि चुभ जाए तो क्या होगा?
💥विकास के नाम पर करोड़ों की स्वीकृति :-
गरियाबंद को जिले का रूप दिए जाने के बाद से ही अक्सर यह होता आया है कि जिस धरोहर को हमें संजोकर सुरक्षित रखना चाहिए उसे नष्ट होते हमारे ही बीच के प्रतिनिधि या प्रशासन में बैठे अधिकारीगण देखते रहते हैं। करोड़ों–अरबों रुपए जिला मुख्यालय में विकास की गंगा बहाने के नाम पर स्वीकृत तो होती है किंतु वह कार्य नहीं होता जो कराना या होना आवश्यक होता है।
💥अपनी सुविधा के लिए तोड़ दिये बाउंड्री :-
बीच बस्ती में स्थित स्कूल मैदान के चारों तरफ बनी बाउंड्री (दीवार) को आसपास के लोगों ने अपने–अपने घरों के सामने तोड़कर रास्ता का रूप दे दिया है और बीच मैदान से लोग आम निस्तारी का रास्ता बनाकर आवागमन करते हैं। इनमें कुछ ऐसे भी होंगे जिनके बच्चे इस स्कूल में पढ़ते होंगे या पढ़ कर निकल चूके होंगे।
सवाल उठता है, ऐसे में कौन करेगा इस खेल मैदान की रक्षा ? इस मैदान में उपद्रव करने वालों पर रोकटोक क्यों नही है ? अपने निज स्थान धरोहर की रक्षा में हम सामने नहीं आयेंगे तो और कौन आएगा ?
स्कूल मैदान के चारों तरफ यदि दीवारें दुरुस्त कर गेट लगाकर एक चौकीदार की व्यवस्था कर दी जाती तो इस मैदान की सुरक्षा बेहतर तरीके से किया जा सकता है। वास्तव में देखा जाय तो हकीकत की तहतक की जो तस्वीरें सामने आ रही हैं उससे तो यही प्रतीत होता है कि शिक्षा का राग अलापने वाले न तो नेता मंत्री ध्यान दे रहे हैं और ना ही स्थानीय प्रशासन। यही हाल रहा तो वह दिन दूर नहीं जब लोग गरियाबंद में खेल प्रतियोगिताओं के लिए मैदान ढूंढते रह जायेंगे।