
💥प्रदूषण और बर्बादी का धमाकेदार तोहफा, लगने जा रहा बारूद का कारखाना।
💥पाँचवी अनुसूची के अनुसूचित क्षेत्र में बिना अनुमति भूमि अधिग्रहण पेसा एक्ट का खुला उल्लंघन।
💥कंपनी के खिलाफ सुलग रही ग्रामीणों में मुखालफत की चिंगारी, कहा बारूद फैक्ट्री से हो जायेंगे तबाह।
💥 बिना अनुमति ग्रामसभा के एसडीएम ने कर दिया डायवर्सन तो ग्रामवासियों ने की निलंबन की माँग।
तहतक न्यूज/रायगढ़।
बारूद बनाने की फैक्ट्री लगाने जा रही ब्लैक डायमंड कंपनी के विरुद्ध सुलग रही आक्रोश की चिंगारी अब भड़कने लगी है, जिसकी आंच जिला मुख्यालय तक पहुँच चुकी है। जिले के घरघोड़ा ब्लॉक के ग्राम डोकरबुड़ा से सौ से भी अधिक संख्या में कलेक्ट्रेट पहुँचे ग्रामीण महिलाओं और पुरुषों ने ब्लैक डायमंड कंपनी के विरोध में जमकर भड़ास निकाली। यही नहीं, जनदर्शन में कलेक्टर के नाम शिकायत पत्र में घरघोड़ा एसडीएम पर कड़ी कार्रवाई की मांग करते हुए कहा कि बारूद फैक्ट्री आने से क्षेत्र में तबाही का मंजर होगा, इसलिए वे मरते मर जायेंगे, मगर अपनी जमीन का एक टुकड़ा तक नहीं देंगे।

बता दें कि घरघोड़ा विकासखण्ड के ग्राम पंचायत छर्राटांगर के आश्रित ग्राम डोकरबुड़ा की महिलाएं चूल्हा चौका छोड़कर और पुरुष खेती किसानी त्याग कर मंगलवार को जनदर्शन में शिकायत लेकर पहुंचे। इनकी शिकायत है कि डोकरबुड़ा ग्राम पंचायत छर्राटांगर (सांसद राधेश्याम राठिया का गांव) का आश्रित गाँव है जोकि संविधान की पांचवीं अनुसूची के अंतर्गत अनुसूचित क्षेत्र में आता है, जहां किसी और प्रकार के उद्योग, परियोजना या भूमि उपयोग परिवर्तन हेतु ग्राम सभा की अनुमति एवं अनापत्ति अनिवार्य होती है, लेकिन ब्लैक डायमंड कंपनी, धनबाद द्वारा हमारे ग्राम में खरीदी गई भू्मि का डायवर्सन हेतु आवेदन पर एसडीएम, नायब तहसीलदार घरघोड़ा द्वारा ईश्तहार जारी किया गया और हितपक्षों, ग्रामवासियों सें आपत्ति मंगायी गई थी। सभी ग्राम वासियों द्वारा विरोध एवं आपत्ति के बावजूद अनुविभागीय अधिकारी, घरघोड़ा द्वारा कंपनी से मिलीभगत कर ग्राम सभा की अनुमति के बिना ही अवैध रूप से डायवर्सन (व्यपवर्तन) कर दिया गया है जो कि हमारे संवैधानिक अधिकारों का हनन है। वर्तमान में कंपनी द्वारा इस भूमि पर विस्फोटक उद्योग स्थापित करने के लिए पेड़ों की कटाई, जमीन की खुदाई कार्य शुरू हो चुकी है, जिससे ग्रामवासियों की सुरक्षा को गंभीर खतरा उत्पन्न हो रहा है। यह कृत्य पंचायत अधिनियम, 1996 (PESA Act), भूमि अधिग्रहण अधिनियम एवं अन्य संवैधानिक प्रावधानों का खुला उल्लंघन है।

महिलाओं ने निवेदन किया कि इस अवैध डायवर्सन को तत्काल प्रभाव से निरस्त किया जाए। ब्लैक डायमंड एक्सप्लोसिव कंपनी द्वारा किए जा रहे सभी कामों को तत्काल बंद करायी जाय वहीं, एसडीएम घरघोड़ा द्वारा की गई अनियमितताओं एवं ग्राम सभा की अवहेलना के लिए उन्हें तत्काल निलंबित कर कठोर कानूनी कार्यवाही की जाए तथा ग्रामवासियों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए संबंधित विभागों को निर्देशित कर इस विषय की उच्च स्तरीय जांच करवाई जाए। हम आशा करते हैं कि आप इस गंभीर विषय पर शीघ्र संज्ञान लेते हुए संविधान द्वारा प्रदत्त हमारे अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करेंगे। यदि एक सप्ताह के अंदर डायवर्सन निरस्तीकरण कर एसडीएम घरघोड़ा पर उचित कार्यवाही नहीं हुई तो उग्र आंदोलन करने के लिए हम ग्रामवासी बाध्य होंगे जिसकी समस्त जिम्मेदारी प्रशासन की होगी।

💥जनता का नेता बना कंपनी का हितैषी
ग्राम वासियों की मानें तो एक वरिष्ठ बीजेपी नेता अपने रसूख का धौंस दिखाते हुए कंपनी के लिए जंगल में जेसीबी से गड्ढा खुदवा रहे हैं। प्रशासन की शह पर ये बीजेपी लीडर खुद को सांसद का बेहद करीबी और खास बताते हैं लेकिन ग्रामीणों की मदद करने के बजाय ब्लैक डायमंड कंपनी के हितैषी बने बैठे हैं जिससे लोग खार खाये बैठे हैं। नेता जी के हरकतों से नाराज ग्रामीण अब एसडीएम कार्यालय के घेराव से लेकर चक्काजाम तक की चेतावनी भी दे रहे हैं।

उपरोक्त घटनाक्रम के तह तक जाकर देखा जाय तो हकीकत की जो तस्वीरें सामने आ रही हैं उससे, लगता है कि अब आम जन-मानस के मन में समाज और जनहित को लेकर बने नियम कानून की अवहेलना पर अनेकों सवाल उठने लगे हैं। एक जिम्मेदार और उच्च अधिकारी के मनमानी व तानाशाही रवैये से जहाँ पूरे सिस्टम से भरोसा उठने लगा है तो वहीं, जनता की अगुवाई करने वाले कथित नेता भी सवालों के कटघरे में खड़े नजर आ रहे हैं। विधानसभा, लोकसभा और अभी हाल ही में संपन्न हुए नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव में अपने-आपको जनता का सेवक, जुझारू, कर्मठ, योग्य और एक फोन पर खड़ा होने वाले लोकप्रिय नेता कहलाने का दावा करने वाले सांसद, विधायक, डीडीसी, बीडीसी, सरपंच, पंच बन जाते हैं परन्तु ऐसे मौकों पर न जाने ऐसी कौन सी सूंघनी सूंघ कर गहरी नींद में चले जाते हैं जिससे इनकी आहट तक नहीं मिलती और आम जनता को जन-दर्शन में दर्शन देने जाना पड़ता है। क्या बदल गयी है लोकतंत्र की परिभाषा?