
💥 विस्तार का आदेश दिलाने मेहरबान क्यों है पर्यावरण विभाग?
💥सुप्रीमकोर्ट के आदेश पर पाँच सालों से बंद है कोलमाइंस।
💥बंद खदान के गुपचुप विस्तार का चल रहा प्रशासनिक षड़यंत्र ?
💥क्या…दावा आपत्ति से हो जायेगा निपटारा ?
तहतक न्यूज/रायगढ़।
जिले का पर्यावरण विभाग जिसे कुंभकर्णी विभाग की उपमा दी जाय तो कोई अतिशंयोक्ति नहीं होगी। अपने कर्त्तव्यों से विमुख, हमेशा नींद में मगन रहने वाला यह विभाग न जागे तो ही अच्छा, क्योंकि ये जब भी जागता है तो जिले का पर्यावरण थरथराने लगता है और वातावरण में प्रदूषण का एक और दानव पैदा हो जाता है।
हम बातें कर रहे हैं निकट भविष्य में सारडा एनर्जी कंपनी के विस्तार की, जिसके लिए बताया जा रहा है कि पर्यावरण विभाग उद्योगों से कमीशन खाने का नया तरीका खोज लिया है, अब वह कंपनी के विस्तार के लिए लोगों से से दावा आपत्ति मंगा रही है ताकि प्रभावित जनता के विरोध का सार्वजनिक सामना न करना पड़े और कागजों में ही उसका निपटारा कर दिया जाए। कहने का तात्पर्य “हींग लगै न हर्रा, रंग लगै चोखा।”
पहले कंपनियों के लिए यही काम फर्जी जनसुनवाई के माध्यम से किया जाता था, परन्तु इस साजिश की कलई खुल जाने से अब पर्यावरण विभाग लोगों के इस अधिकार को ही छीनने का प्रयास कर रहा है। जिले के पर्यावरण विद् राजेश त्रिपाठी ने पीठासीन अधिकारी को एक पत्र लिख कर दावा आपत्ति की प्रक्रिया को निरस्त किए जाने की मांग की है। सारडा एनर्जी के विस्तार के लिए कागजी सुनवाई का यह प्रपंच 21 जनवरी को बजरमुडा गांव में होने जा रहा है। इस दावा आपत्ति की प्रक्रिया को लेकर राजेश त्रिपाठी ने 22 बिंदुओं पर इस तथाकथित दावा आपत्ति का विरोध करते हुए कहा है कि कोल माइंस की वजह से स्थानीय लोगों को फ्लोराइड युक्त पानी पीना पड़ रहा है जिसके कारण लोग कुबड़ेपन और दांतो में संक्रमण का शिकार हो रहे हैं, इसके अलावा वाशरी के माइंस के बाहर होने की बात भी पूरी तरह झूठ का पुलिंदा है जबकि गुगल मैप में वाशरी साफ तौर पर अंदर नजर आ रही है इसके अलावा जिंदल द्वारा वाशिंग के लिए कोयला दिए जाने की बात भी पूरी तरह बेबुनियाद व मनगढ़ंत है जो किसी के भी गले के नीचे नहीं उतरेगी। माइंस में होने वाले विस्फोटों से आसपास के गांवों के जल स्रोत सूख गए हैं और वातावरण में भारी प्रदूषण फैल गया है। लापरवाही पूर्वक माइंस का संचालन करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने माइंस को बंद करने के आदेश दिए थे जिसके कारण माइंस पांच साल से बंद है, इस क्षेत्र में वन्य पशु जैसे हाथी,सांभर, सूअर, बन्दर, भालू सांप इत्यादि जीव-जंतु पाए जाते हैं, माइंस के शुरू होने से जानवरों की वंश वृद्धि और उनके स्वतंत्र जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, इसके अलावा और भी अनेकों महत्वपूर्ण आपत्तियां पत्र में दर्ज कराई गई हैं इसके बावजूद भी पर्यावरण विभाग इस कोल माइंस को विस्तारित करने का षड्यंत्र कर रहा है।
रायगढ़ जिले में फलते-फूलते उद्योगों की मनमानी और सीमा से अधिक बढ़ रहे प्रदूषण व लगातार हो रहे विस्तार के मामले में तह तक जाकर देखें तो धन के आगे ज्ञान और बुद्धि इस हद तक नतमस्तक हो चुके हैं कि जनता को अब और कोई उम्मीद ही नजर नहीं आ रही है। भ्रष्टाचार का खरपतवार इतना बढ़ गया है कि कोई भी दवा काम नहीं आ रही है। पर्यावरण बचाने का वादा करने वाले नेता सत्ता में आने के बाद मूक-बधिर बन जाते हैं। कोई ये नहीं सोच रहे कि आज जहाँ पानी का बॉटल खरीद कर पीना पड़ रहा है वहीं आने वाले समय में साँस लेने के लिए कहीं ऑक्सीजन का सिलिंडर न खरीदना पड़ जाय। ऑक्सीजन केवल आम लोगों के लिए ही नहीं है, जो प्रदूषण फैला रहे हैं उनके लिए भी जरुरी है लेकिन धन-लोलुपता में सब अंधे होते जा रहे हैं।