
💥सालासर की सर्र-सर्र से ग्राम वासियों की उड़ी नींद।
💥लाल डिब्बा साबित हो रहे प्रदूषण मापक यन्त्र।
तहतक न्यूज/गेरवानी।
लैलूंगा विधानसभा क्षेत्र के पूँजीपथरा थाना अंतर्गत गेरवानी के आसपास कुण्डली मार कर बैठे कुछ उद्योग जहरीले नाग की तरह जहाँ पूरे वातावरण में खतरनाक धुएं और राख के गुबार फूँक रहे हैं वहीं अब कान के परदे फाड़ देने वाली पॉवर प्लांट की बीनें भी ध्वनि प्रदूषण फैलाने शुरू कर दिये हैं।

आपको बता दें कि इस क्षेत्र में ग्राम पंचायत लाखा भयंकर से भी अति भयानक प्रदूषण की चपेट में है, इसके तीनों दिशाओं में रुपेश, वजरान, महालक्ष्मी, रीयल वायर, सुनील इस्पात और सालासर स्टील एंड पॉवर कम्पनियाँ स्थापित हैं जिनमें सुनील और सालासर बड़े उद्योगों में गिने जाते हैं और इन्हीं दो उद्योगों ने गाँव में तबाही मचा रखी है।
स्थानीय निवासियों की मानें तो यहाँ उद्योगों द्वारा रात में भारी मात्रा में डस्ट छोड़ा जा रहा है जिसके चलते लोगों रहना मुश्किल हो गया है। बताते हैं, घर के अंदर तो क्या? पेटी,आलमारी के भीतर काला डस्ट घुस जा रहा है। घर में रखे कीमती सामान खराब हो रहे हैं। रात में सोते हैं और सुबह उठते हैं तो खखारने पर काला डस्ट निकल रहा है। आँखों और सीने में जलन होते रहती रही है जिससे किसी गंभीर बीमारी की आशंका हमेशा बनी रहती है। इतना ही नहीं अब तो सालासर के 65 मेगावाट चालू होने से हर आधे घंटे में स्टीम छोड़ा जा रहा है जिसकी कान फोड़ू आवाज इतनी तेज है कि आसपास गाँव के लोग एक-दूसरे की बात नहीं सुन पाते। लोग जायें तो जायें कहाँ?
स्थानीय ग्रामीणों को लगातार हो रही परेशानियों के कारणों की तह तक की बात करें तो यहाँ उद्योगों की बढ़ती मनमानी और औद्योगिक सुरक्षा नीति नियमों की खुले आम धज्जियाँ उड़ाई जाने की बातें सामने आ रही हैं। यहाँ केवल दिखावे के लिए प्रदूषण रोधी यन्त्र लगा दिये गये हैं जो रात में काम ही नहीं करता। जब से हर प्लांट में प्रदुषण मापक यन्त्र लगे हैं तब से डस्ट की मात्रा और बढ़ गयी है जबकि प्रदूषण तो होना ही नहीं चाहिए। इससे साफ जाहिर होता है कि यहाँ लगे प्रदूषण मापक यन्त्रों की कोई रीडिंग नहीं हो रही है। पर्यावरण संरक्षण के लिए भले ही जितना कठोर कानून बना दिये गये हैं लेकिन भ्रष्टाचार इतना हावी हो गया है कि इस कानून की उतनी ही निर्ममतापूर्वक हत्या हो रही है।
सवाल उठता है, प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों पर कभी-कभार कार्यवाही करने वाला पर्यावरण विभाग आखिर कंपनियों पर इतना मेहरबान क्यों है? ग्रामीणों के विकास के नाम पर पतन की माला जपने वालों को उद्योगों के हवन कुंड से निकलने वाला जहरीला धुंआ क्यों नहीं दिखाई दे रहा? इधर जनता त्राहिमाम् कर रही है और उधर वोट के समय हाथ जोड़ने वाले नेता, मंत्री और विधायक खामोश क्यों हैं। क्या इसे ही कहते हैं लोकतंत्र?
