
💥 अब क्या दिन में भी मंडराएगी प्रदूषण की काली छाया…?
💥परेशान स्थानीय वासियों की चल रही लगातार बैठकें, कर रहे विरोध की तैयारी…?
💥प्रदूषण की डीजे में डिस्को करता गेरवानी अब ता ता थैया करने को होगा मजबूर..?
तहतक न्यूज/बुधवार/16अक्टूबर 2024/गेरवानी।
कथनी और करनी में कितना बड़ा अंतर हो सकता है इसका अनुमान लगाना हो तो गेरवानी क्षेत्र में 23 और 24 अक्टूबर को होने जा रहे पर्यावरणीय लोक सुनवाई के आयोजन से सहज ही लगाया जा सकता है। पर्यावरण संरक्षण को लेकर कहा कुछ और जाता है तथा किया कुछ और जा रहा है। मानसून आते ही जहाँ बरसाती मेंढकों की तरह पौधरोपण की टर्र-टर्र सुनाई देती है तो वहीं बारिश के बाद क्षेत्र के विकास के नाम पर धन कुबेरों की तिजोरियां भरने के लिए वृक्षों को नष्ट करने, पर्यावरण को तार-तार करने स्थानीय जनता की येन-केन-प्रकारेण स्वीकृति लेकर धरती की हरियाली को करियाली में बदला जा रहा है और आने वाली अपनी ही पीढ़ी को बर्बाद करने की कोशिश की जा रही है।
आपको बता दें कि जिला मुख्यालय से चंद मील दूर गेरवानी क्षेत्र जो कभी प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर शांत इलाका हुआ करता था, आज यहाँ उद्योगों का मेला लगा हुआ है। यहाँ का वातावरण उद्योगों की मनमानी से इतना बदतर हो चुका है कि खुले में साँस लेना मुश्किल हो गया है। ऐसी हालत में दो और बड़े उद्योग, एन. आर. कंपनी और माँ काली एलायज का बड़े पैमाने पर विस्तार होने जा रहा है। सवाल उठ रहा है कि अब इस क्षेत्र के पर्यावरण और यहाँ निवासरत जनता जिनमें आरक्षित आदिवासियों की संख्या सर्वाधिक है, कैसे बच पाएंगे..?

आश्रित ग्राम शिवपुरी पूर्णतया आदिवासी गाँव है और यहाँ के ग्रामीणों के अनुसार उनकी पुश्तैनी और शासकीय मद की लगभग 1300 एकड़ जमीन है जो कि हरे-भरे जंगल से आच्छादित है। यहाँ सामान्य वर्ग की जमीन ही नहीं है। ग्राम वासियों की मानें तो वे किसी भी कीमत पर अपनी जमीन देना नहीं चाहते हैं। उल्लेखनीय है कि आदिवासी जमीन को न तो बेचा जा सकता है और ना ही खरीदा जा सकता है ऐसे में इन उद्योगों का विस्तार हो पाता है या नहीं यह तो आने वाला वक्त ही बता पायेगा। बहरहाल आइये सुनते हैं क्या कहते हैं आरक्षित आदिवासी ग्रामवासी…