
💥बिना सेफ्टी बेल्ट के तीस फीट ऊँचे शेड में लगा रहा था सीट, पुराने सीट के टूटने से गिरा नीचे..।
💥ठेके पर काम देकर कंपनी हो जाते हैं निश्चिन्त..!
💥हाइटेक के जमाने में मजदूरों के जान की कीमत महज पाँच लाख…?
तहतक न्यूज/30 जुलाई/मंगलवार/देलारी।
कहते हैं जब मौत आती है तो दबे पाँव आती है और कोई न कोई बहाने से अपने आगोश में ले ही लेती है। ऐसा ही कुछ वाकया रायगढ़ के तमनार विकासखण्ड के ग्राम पंचायत देलारी स्थित गुरुश्री इंडस्ट्रीज में देखने को मिला। ग्राम छर्रा टांगर निवासी जलेश्वर राठिया पिता दशरथ राठिया कल सोमवार गुरुश्री इंडस्ट्रीज में ग्यारह बजे के करीब 30 फीट ऊँची छत पर सीमेंट (एस्बेस्टेड) सीट लगाने का कार्य कर रहा था। उसे क्या पता था कि नीचे खड़ी मौत उसका इंतजार कर रही है। जिस सीट पर बैठ कर काम कर रहा था वह सीट पुराना होने के कारण अचानक टूट गया और जलेश्वर लगभग 25/30 फीट नीचे फर्श पर आ गिरा जिससे वह अंदरूनी चोट लगने से गंभीर रूप से घायल हो गया। आनन-फानन में उसे रायगढ़ के जिंदल अस्पताल ले जाया गया जहाँ इलाज के दौरान कल दोपहर को ही उसकी मौत हो गयी। मृतक की उम्र लगभग 27 वर्ष बताया जा रहा है उसके तीन छोटे-छोटे बच्चे हैं जिनमें एक सबसे छोटा दूध मुँहा बच्चा गोद में है। इस हृदय विदारक घटना में गुरुश्री इंडस्ट्रीज के तटस्थ रहने से नाराज परिजन एवं ग्रामवासी आज पोस्टमार्टम पश्चात् मृतक के शव को कंपनी के मुख्य दरवाजे पर रख धरने पर बैठ गये और मुआवजे की मांग करने लगे। ग्यारह बजे से बैठे परिजनों की ओर प्रबंधन द्वारा कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा था। शाम होते-होते जब भीड़ बढ़ने लगी और ग्रामीणों का आक्रोश बढ़ने लगा तब कहीं जाकर गुरुश्री इंडस्ट्रीज को होश आया और मान-मनौव्वल करते हुए क्षति-पूर्ति के रूप में पाँच लाख रूपये मृतक की पत्नी के खाते में देने की बात कही। इस बीच पूंजी पथरा टीआई राकेश कुमार मिश्रा व उनकी टीम ने अपने कुशल अनुभव का परिचय देते हुए वस्तु स्थिति को संभाला और मामले का पटाक्षेप किया।
घटना क्रम के हकीकत की तह तक की बात करें तो जो सच्चाई सामने आ रही है उससे तो यही प्रतीत हो रहा है कि कार्य के दरमियान प्रबंधन द्वारा सुरक्षा उपकरणों का कहीं कोई इस्तेमाल नहीं किया गया। यदि किया गया होता तो शायद जलेश्वर आज जीवित रहता। प्रबंधन की लापरवाही की वजह से एक सुहागन का सुहाग उजड़ गया, तीन अबोध बच्चे जिन्होंने अभी दुनिया देखी नहीं उनके के सिर से पिता का साया हट गया। हालात ये है कि एक मजदूर की जान की कीमत महज पाँच लाख रूपये आँकी जा रही है।
जब हमने इस घटना के सम्बन्ध में कंपनी प्रबंधन से उनका पक्ष जानना चाहा तो कुछ भी कहने से इंकार कर दिया। एक बात और…. मजदूरों के हित की बात करते नहीं थकने वाले कोई भी मजदूर नेता मौके पर नजर नहीं आये।
