
तहतक न्यूज /शिमला, हिमाचल प्रदेश।
कश्मीर चंद शडयाल द्वारा दाखिल याचिका में हाईकोर्ट ने प्रदेश के मंदिरों पर एक महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक फैसला सुनाया है, जिसमें हाईकोर्ट ने कहा कि मंदिरों में चढ़ाया गया पैसा मंदिर के देवता का है और प्रदेश सरकार का इस पर कोई हक नहीं है। जो ट्रस्टी हैं वे केवल संरक्षक हैं।

दरअसल, हाईकोर्ट ने अपने फैसले में मंदिरों में चढ़ाए जाने वाले चढ़ावे और दान को अब किसी भी शासकीय योजनाओं या असंबंधित कार्यों में खर्च करने पर रोक लगा दी है। हाईकोर्ट ने कहा कि यह धन केवल धार्मिक, शैक्षणिक और धर्मार्थ कार्यों में ही इस्तेमाल होगा, जो हिंदू धर्म के प्रचार और संरक्षण से जुड़े हों. कोर्ट ने आदेश दिए हैं कि मंदिरों की आय और व्यय का व्योरा परिसर में सार्वजनिक तौर पर लिखा जाना चाहिए।

जस्टिस विवेक सिंह ठाकुर और जस्टिस राकेश कैंथला की खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा कि मंदिर की आय “पवित्र” है और इसे राज्य के राजस्व या सरकारी खजाने का हिस्सा नहीं माना जा सकता, कोर्ट ने यह भी कहा कि भक्त मंदिरों में जो दान करते हैं, वह भगवान के प्रति उनकी आस्था का प्रतीक होता है। यह पैसा देवताओं की सेवा, मंदिरों के रखरखाव और सनातन धर्म के प्रचार में लगना चाहिए। सरकार अगर इस पैसे का इस्तेमाल अपने कामों के लिए करती है, तो यह भक्तों के विश्वास के साथ धोखा है।

संविधान के अनुच्छेद 25(2) का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा कि राज्य का काम केवल धर्म से जुड़ी सांसारिक गतिविधियों को नियंत्रित करना है, न कि मंदिरों की आय को अपनी योजनाओं में लगाना। कोर्ट ने कहा कि धार्मिक स्वतंत्रता सरकारी सुविधा पर निर्भर नहीं है। राज्य का कर्तव्य है कि वह हिंदू समाज के सुधार के लिए काम करे और यह सुनिश्चित करे कि मंदिरों की आय धर्म के सच्चे अर्थों में खर्च हो. हाईकोर्ट ने सभी मंदिर प्रशासन को आदेश दिया है कि वे हर महीने की आय और खर्च का ब्यौरा नोटिस बोर्ड और वेबसाइट पर सार्वजनिक करें, ताकि पारदर्शिता बनी रहे।

हाईकोर्ट ने कहा कि मंदिर सिर्फ पूजा के स्थान नहीं हैं, बल्कि समाज के आध्यात्मिक और सामाजिक उत्थान के केंद्र हैं। प्राचीन काल से मंदिर शिक्षा, कला और सेवा के केंद्र रहे हैं और अब उन्हें फिर से सेवा और समाज सुधार के केंद्र के रूप में अपनी भूमिका निभानी चाहिए।

उल्लेखनीय है कि हिमाचल प्रदेश में 36 मंदिरें हैं, जो सरकार की देखरेख में हैं। इन मंदिरों में हर साल लाखों रुपये का चढ़ावा और सोना चांदी श्रद्धालुओं द्वारा चढ़ाया जाता है। इन मंदिरों के पास लगभग 404 करोड़ की संपत्ति व नकद राशि है।

हिमाचल प्रदेश के उच्च न्यायालय के इस महत्वपूर्ण निर्णय से मानव समाज का न केवल आध्यात्मिक और सामाजिक उत्थान को बढ़ावा मिलेगा, अपितु मंदिरों को पुनः प्राचीन काल की तरह शिक्षा, कला व सेवा का केंद्र बनने का अवसर प्राप्त होगा। हाईकोर्ट का यह ऐतिहासिक फैसला देश के अन्य राज्यों के लिए एक बड़ी मिसाल है।


