तहतक न्यूज/जशपुर।
छत्तीसगढ़ की साय सरकार जहाँ अपनी उपलब्धियों को लेकर डमरू बजाने में व्यस्त है तो वहीं उसकी प्रजा का एक हिस्सा प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ उठाने और अपने मौलिक अधिकार के लिए दर-दर भटकने को मजबूर हो रहा है। मामला है जशपुर जिले के बगीचा विकासखंड का जहां शिकायतकर्ता मूढ़ी ग्राम पंचायत के निवासी उप नारायण यादव का नाम ग्राम सचिव कमल नारायण यादव ने मूढ़ी गांव से यह कहकर कटवा दिया कि तुम यहां के निवासी नहीं हो।
वास्तव में शिकायतकर्ता उप नारायण यादव का पैतृक घर मूढ़ी में हैं जहां वह खेती किसानी करके गुजर-बसर करता है वहीं ग्राम महनई में उसके पिता रहते हैं जिनकी देखरेख व सेवा के लिए उसका महनई में आना जाना लगा रहता है।बता दें कि उप नारायण यादव का आधार कार्ड, वोटर कार्ड और बच्चों का निवास सम्बन्धी सारे दस्तावेज ग्रामपंचायत मूढ़ी के हैं फिर भी पंचायत सचिव द्वारा मतदाता सूची से उसका व उसकी पत्नी अमिता यादव का नाम हटा दिया गया है इतना ही नहीं, प्रधानमंत्री आवास क्रमांक CH – 3054148 उप नारायण नाम से सूची में दर्ज है उसे भी अपात्र कर दिया है जबकि सचिव कमल नारायण यादव की मानें तो वह मूढ़ी में नहीं रहता है।उसका राशन कार्ड महनई का होने के कारण उसे मूढ़ी से हटा दिया गया है।
कलेक्टर जनदर्शन में दिए अपने शिकायत पत्र में उप नारायण ने उल्लेख किया है कि मुझे मताधिकार से वंचित किया गया है मेरा व मेरी पत्नी का नाम मतदाता सूची से हटा दिया गया है। इसका कारण पंचायत सचिव कमल नारायण यादव है। क्योंकि सचिव कई वर्षों से एक ही पंचायत में पदस्थ है और अपना दबदबा बना कर ईर्ष्या की भावना से पक्षपात कर अपने पक्ष का पंच सरपंच का समर्थन बनाये रखने के लिए मेरे साथ ऐसा किया गया है और सचिव द्वारा बोला जा रहा है तेरा आवास नहीं बनने दूंगा जहाँ जाना है जाओ।
उपरोक्त मामले की तहतक जाकर देखें तो यह केवल एक उप नारायण का ही मामला नहीं है। ग्रामीण क्षेत्रों में कई ऐसे पंचायत हैं जहाँ सचिव और सरपंच मिलकर मनमानी कर रहे हैं। कई ऐसे गरीब परिवार हैं जो राशनकार्ड के लिए 1000 से 1500 रुपए देकर भी महीनों से भटक रहे हैं। आवास योजना का लाभ पात्रों के बजाय अपात्रों को दिया जा रहा है। गावों में राशन की दुकान खुलने का कोई निश्चित तारीख भी नहीं होता और महीने में मात्र दो-तीन दिन ही खोला जाता है और चावल खत्म हो गया बोला जाता है। कई दुकानों में तो पंचिंग मशीन अक्सर बिगड़ जाता है और अगले महीने मिलेगा कहकर दुकान बंद कर दिया जाता है। इस प्रकार सबसे ज्यादा हेराफेरी और भ्रष्टाचार गावों में व्याप्त है क्योंकि गरीब ग्रामीण सीधे-सादे व भीरू स्वभाव के होते हैं और उलझना नहीं चाहते। रोज कमाने और रोज खरीद कर खाने वाले के पास बड़े अधिकारियों के समक्ष गुहार लगाने जाने के लिए न तो समय होता है और न ही पैसे। जब अति होता है तभी सौ में कोई एक हिम्मत करता है लेकिन त्वरित कार्यवाही के बजाय आश्वासनों का झुनझुना थमा दिया जाता है।
आम जन मानस के मन में ये सवाल जरूर उठ रहा है कि जनता की छोटी-मोटी समस्याएं जिसे मैदानी स्तर के कर्मचारी सुलझा सकते हैं ऐसी शिकायतों के लिए जिले के आला अधिकारियों के पास जाना पड़ता है क्या इसी को कहते हैं सुशासन? जब छोटे अधिकारी-कर्मचारियों के काम बड़े अधिकारी करने लगेंगे तो बड़े काम करेगा कौन ?