💥22 माह पूर्व आदिवासी महिला सरपंच को एसडीएम ने किया था पदमुक्त
💥एसडीएम के आदेश की चुनौती को हाईकोर्ट ने किया था खारिज
💥एससी ने की सुनवाई, सरपंच के खिलाफ कार्यवाही को किया रद्द
तहतक न्यूज/जशपुर।
कहते हैं सत्य परेशान हो सकता है लेकिन पराजित नहीं, मगर परेशानी भी कोई कम नहीं होती। कुछ लोग तो परेशानियों से तंग आकर वापस मुड़ जाते हैं, किन्तु कुछ ऐसे भी हैं जो हिम्मत नहीं हारते और अंत तक डटे रहते हैं और जब एक आदिवासी महिला की बात हो तब तो बात ही कुछ और खास हो जाती है। कुछ ऐसा ही एक उदाहरण सामने आया है जशपुर जिले से जहाँ एक आदिवासी महिला सरपंच को झूठे बहाने से पद मुक्त कर दिया गया था।
विश्वसनीय सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार ग्रामपंचायत साज बहार की आदिवासी महिला सरपंच सोनम लकड़ा को रीपा के कार्य में लेट-लतीफी के आधार पर 18 जनवरी 2023 को एसडीएम ने कार्रवाई करते हुए पद मुक्त कर दिया था। सोनम लकड़ा ने एसडीएम के आदेश को हाईकोर्ट बिलासपुर में चुनौती दी थी जहाँ अपील को हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था। महिला सरपंच हिम्मत नहीं हारी और सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगायी जहाँ न्याय मूर्ति सूर्यकान्त उज्जल भुईयां ने सुनवाई की तथा सरपंच के खिलाफ कार्यवाही को रद्द करते हुए कहा कि अधिकारियों ने महिला सरपंच को झूठे बहाने से हटाया। अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने तत्कालीन छत्तीसगढ़ सरकार पर एक लाख रूपये का जुर्माना भी लगाया है।
सोनम लकड़ा को उसके साहस और मजबूत आर्थिक स्थिति ने जीत तो दिला दी और उसे पद पुनः हासिल भी हो जायगा किन्तु उल्लेखनीय है कि उसके पद के कार्य काल के चंद हफ्ते ही शेष रह गये हैं। ऐसे में पंच वर्षीय सरपंच पद के महज कुछ हफ्तों की खातिर सुप्रीम कोर्ट की दहलीज तक पहुंचने का साहस जहाँ काबिल ए तारीफ लगता है तो वहीं यह भी सोचने को विवश करता है कि एक आम इंसान को सामान्य न्याय की खातिर कितना बड़ा संघर्ष करना पड़ता है। इस प्रकार पूरा सिस्टम ही सवालों के कटघरे खड़ा नजर आ रहा है।
तह तक की बात करें तो विभागीय स्तर के साधारण न्याय के लिए महँगे वकीलों के मार्फत देश के सर्वोच्च और कीमती न्यायालय की शरण लेनी पड़े तो बीच के न्याय व्यवस्थाओं की अहमियत क्या रह जाएगी इसे हर कोई समझ सकता है। आज महँगाई के इस दौर में सिविल कोर्ट, हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट तक पहुँच पाना हर किसी के वश की बात नहीं है। बहरहाल सोनम को उसके अथक प्रयास से न्याय मिल गया है किन्तु सवाल उठता है कि क्या इसी तरह हर उस आम फरियादी को न्याय पाने के लिए सुप्रीम कोर्ट तक जाना होगा ?