तहतक न्यूज/सोमवार/02सितम्बर 2024/रायगढ़.
भारत त्यौहारों का देश है। प्राचीन काल से हर खुशियों के मौके पर कुछ न कुछ अनुष्ठान कर पर्व के रूप में मनाना हमारे भारतीय संस्कृति की विशेषता रही है। इसी कड़ी में आज अमावस्या को पूरे छत्तीसगढ़ में हर्ष और उल्लास के साथ पारम्परिक लोक उत्सव “पोरा” पर्व मनाया जा रहा है। छत्तीसगढ़ का विशिष्ट कलेवा “खुरमी” और “ठेठरी” बना कर धान के पौधों को अर्पित किया जाता है और मिट्टी के बने नंदी बैल की पूजा करते हैं। आपको बता दें कि जब धान के पौधों में पोर फूटने लगते हैं तब उसे गर्भधारण करने की अवस्था कहते हैं। यह किसानों के लिए बड़ी खुशी की बात होती है।
उन्हें भरोसा होता है कि फसल अच्छी आएगी और वे इसी खुशी में भादों मास के अमावस्या के दिन को “पोरा” पर्व के रूप में प्रतिवर्ष मनाते आ रहे हैं। जैसा कि हम सब जानते हैं, हिन्दू रीति-रीवाज में नारी जब प्रथम गर्भ धारण करती है तो मायके के तरफ से विभिन्न प्रकार के व्यंजन, मिष्ठान्न आदि खिलाते हैं ताकि आने वाली संतान स्वस्थ और सुन्दर हो। इसे सधौरी खिलाना कहते हैं ठीक इसी तरह किसान भी अच्छी फसल के लिए अपने खेत के लहलहाते धान के गर्भित होने पर सधौरी स्वरुप रोटी-पीठा याने “खुरमी” और “ठेठरी” चढ़ाते हैं।
पोरा के दिन नंदी बैल की भी पूजा करते हैं। नंदी की पूजा के लिए “खुरमी” व “ठेठरी” को विशेष रूप से बनाया जाता है इसे शिवलिंग के रूप में समर्पित कर नंदी की पूजा करते हैं। जो कोई मनौती माने रहते हैं वो आज ही के दिन अपने नंदी बैल के पीठ या जाँघ में त्रिशूल का चिन्ह आंक कर भगवान शिव के नाम उनकी सवारी खातिर खुला छोड़ देते हैं जिसे पूरा गाँव उसे देव तुल्य मानते हैं और उसकी पूजा करते हैं।